Monday, October 11, 2010

पीर हद्रय की क्या होती हें,


इससे हें अभी तू अनजान ,

क्यो र्सुख आॅखे होती हेैं,

ये तू क्या जाने नादान,

ज्यो सुलगे लकडी गीली,

यूॅ मन मेरा जलता हें,

हो गयी सारी त्वचा पीली,

कैसा रोग ये पलता हें ,

सबने देख ये मेरा तन,

लगी खरोंच जहाॅ कोई नही,

किसने देखा विक्षप्त मन,

इच्छाये जहाॅ अभी सोई नही ,

कौन द्यावो पे मरहम धरता हें ,

जीवन हें उसका दीपक तो जलता हें,

1 comment:

  1. "ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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