Tuesday, October 19, 2010

अलग अपनी दुनिया

अलग अपनी दुनिया बसा रहा हूँ मै
तोड कर तुमसे नाता जा रहा हूँ मै
               दुख है तो बस यही तुम मुझे अपना न सके
              चाह कर भी कभी मुझे सीने से लगा न सकें
भाग्य मे जो लिखा है बस वही तो पाऊंगा
अतिथी हूँ एक रात का प्रातः चला जाऊंगा
              कल भी सुहानी प्रातः जगेगी, और चमकेगा रवि
              कल भी सजेगी सभा यहाँ पर, गीत सुनायेंगे कवि
कल भी ज्वलित दीप होगें, दर्द किसी हृदय मे पलेगा
कल भी प्रकाशित होगी सभा, पर ना ये दीपक जलेगा


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