Monday, October 11, 2010

ऐ काश ऐसी मेरी तकदीर होती ,


पास मेरे कोई तेरी तश्वीर होती,

चूमता में हर रोज चेहरे को तेरे ,

लमबी चाहे दुरियो की जकीर होती ,

लगाना कभी सीने से कभी शीशे में सजाना,

दिखाता कभी सबको कभी सबसे छुपाता ,

होता चेहरा वो सामने जो हें तस्व्वर में,

काश पुरी मेरे ख्वाबो की ताबीर ीोती ,

देखकर उसको में हरपल आॅहे भरता ,

तू ना सही तेरी तष्वीर से बाते करता ,

जकडे रहते तेरे होठ जिस कैद में ,

मेरे सुलगते होठो की वो जंजीर होती ,

कहते हें लोग दर से किसी को न खली भेजे ,

फेलाता हें झोली दीपक अपनी तष्वीर देदो,

पहली बार कुछ माॅगा हें तोडना न दिल मेरा,

न दी माॅगने से भी तू मुझसे बडी फकीर होगी,

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