ऐ काश ऐसी मेरी तकदीर होती ,
पास मेरे कोई तेरी तश्वीर होती,
चूमता में हर रोज चेहरे को तेरे ,
लमबी चाहे दुरियो की जकीर होती ,
लगाना कभी सीने से कभी शीशे में सजाना,
दिखाता कभी सबको कभी सबसे छुपाता ,
होता चेहरा वो सामने जो हें तस्व्वर में,
काश पुरी मेरे ख्वाबो की ताबीर ीोती ,
देखकर उसको में हरपल आॅहे भरता ,
तू ना सही तेरी तष्वीर से बाते करता ,
जकडे रहते तेरे होठ जिस कैद में ,
मेरे सुलगते होठो की वो जंजीर होती ,
कहते हें लोग दर से किसी को न खली भेजे ,
फेलाता हें झोली दीपक अपनी तष्वीर देदो,
पहली बार कुछ माॅगा हें तोडना न दिल मेरा,
न दी माॅगने से भी तू मुझसे बडी फकीर होगी,
No comments:
Post a Comment