आज खुद पे यूँ ना शर्माया होता
किसी का दिल जो तुने ना दुखाया होता
लौट जाने दिया उसे खाली हाथ दर से
कम से कम पानी तो पिलाया होता
चाहता तो बचा भी सकता था उसको
अपने हिस्से का निवाला उसे खिलाया होता
तेरा राज भी यूँ चर्चा ए आम न होता
किसी का राज जो तूने छूपाया होता
सरे बाजार ना लुटती इज्जत घर की
किसी बहन के काँधे से आँचल जो ना हटाया होता
रौशनी रहती तेरे घर मे भी आज रात
किसी घर का दीपक जो ना बुझाया होता
बहुत खूबसूरत और संदेशो से परिपूर्ण रचना... बधाई...
ReplyDeleteशब्दों में बयां करना मुश्किल है यह सब. आपने प्रयास किया फिर भी.
ReplyDeleteखूबसूरत संदेश..
ReplyDeletebilkul sahi baat kahi aapne kavita ke madhyam se
ReplyDelete4.5/10
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ....सुन्दर प्रयास
@ Pooja
ReplyDelete@ संजय भास्कर
@ भारतीय नागरिक
@ वंदना
हौसंला अफजाई के लिए धन्यवाद
@ उस्ताद जी
ReplyDeleteनम्बर बढाने के लिए धन्यवाद,
थोडा मार्गदर्शन भी करते रहिए
बहुत खूब दीपक, आत्मावलोकन करवाती रचना है, बधाई दिल से।
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