Wednesday, October 20, 2010

प्यार का असर

प्यार का असर अब घटने लगा है

चाहतो का बादल अब छटंने लगा है
         सिकुडने लगी मुलाकातो की चादर
         बातो का आँचल अब फटने लगा है
चलने लगी जाने कैसी हवायें
बेवक्त मौसम अब बलदने लगा है
          जिस दिल मे था कभी आशयाना मेरा
          उस मे कोई ओर अब बसने लगा है
उनकी राहो मे बिछे फूलों की खातिर
अंगारो पे ये दिल चलने लगा है
          होने वाला है अब उजाला “दीपक“
          आसमाँ का चाँद अब ढलने लगा है


3 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना लगी आपकी, लेकिन आखिरी दो लाईनों में भाव कुछ अलग से लगे, शायद मैं ही नहीं फ़ालो कर पाया।
    शुभकामनायें दीपक जी।

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  2. होने वाला है अब उजाला “दीपक“
    आसमाँ का चाँद अब ढलने लगा है

    ...............बहुत खूब, लाजबाब !

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  3. अब समझ में आया आपकी रचनाओं का रहस्य.

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