Thursday, October 28, 2010

एक बार बस तुम आजाओ

एक बार बस तुम आजाओ
          मेरे होठो पर बन कर गीत
          इन साँसो का बन संगीत
         एक बार बस तुम छा जाओ
एक बार बस तुम आजाआ,
        हृदय मे बन प्रेम ज्वाला
        प्यासे का बन नीर प्याला
        जन्म - 2 की प्यास बुझाओ
एक बार बस तुम आजाओ
        चाह रहे ना कुछ पाने की
        इस जीवन की और मर जाने की
       जब प्रेम से अंग लगाओ
एक बार बस तुम आजाओ
       सर्द मौसम मे बनकर धूप
       चाँदनी सा लेकर रूप
       मेरी मन बगिया महकाओ
एक बार बस तुम आजाओ
       सीप का बन कर मोती
       “दीपक“ की बन कर ज्योति
       जीवन मे प्यार भर जाओ

9 comments:

  1. अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  2. deepak ji jyoti ban kar jaroor ayegi

    ........all the best

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  3. 3/10

    सामान्य पोस्ट / अच्छा प्रयास
    भावों में और ज्यादा गहराई लायें

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  4. शुक्रिया दीपक, बात मानने का।

    " सर्द मौसम मे बनकर धूप
    चाँदनी सा लेकर रूप
    मेरी मन बगिया महकाओ"
    सुन्दर विचार।

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  5. ऐसा अवश्य हो
    प्रेमांकुरण हो चुका है न बधाई
    ताज़ा-पोस्ट ब्लाग4वार्ता
    एक नज़र इधर भी मिसफ़िट:सीधी बात
    बच्चन जी कृति मधुबाला पर संक्षिप्त चर्चा

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  6. संजय भास्कर जी,
    उस्ताद जी,
    मो सम कौन जी,
    गिरिश बिल्लोरे जी,

    आप सबका तहे दिल से शुक्रिया

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  7. बहुत खूब दीपक भाई... बहुत अच्छा लिखते हैं आप......

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  8. हृदय मे बन प्रेम ज्वाला
    प्यासे का बन नीर प्याला
    जन्म - 2 की प्यास बुझाओ
    एक बार बस तुम आजाओ....

    भावुक कर देने वाली रचना --आभार

    .

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  9. @ Shekhar Suman,
    @ ZEAL,

    हौंसला अफजाई के लिए धन्यवाद

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