पीर हद्रय की क्या होती हें,
इससे हें अभी तू अनजान ,
क्यो र्सुख आॅखे होती हेैं,
ये तू क्या जाने नादान,
ज्यो सुलगे लकडी गीली,
यूॅ मन मेरा जलता हें,
हो गयी सारी त्वचा पीली,
कैसा रोग ये पलता हें ,
सबने देख ये मेरा तन,
लगी खरोंच जहाॅ कोई नही,
किसने देखा विक्षप्त मन,
इच्छाये जहाॅ अभी सोई नही ,
कौन द्यावो पे मरहम धरता हें ,
जीवन हें उसका दीपक तो जलता हें,
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeleteशब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।