कर चुका मैं अपना, सब कुछ तुमको समर्पित,
तुम्हे बसा कर मन मन्दिर,
मैने अब तक पूजा है,
तुम ही कहो सहारा,
अब तुम बिन मेरा दूजा है,
प्रेरणा मैने आरजू की,
तुमसे ही तो पायी है,
चाहत तुम्हारी ही तो,
मेरी नस नस में समायी है,
अब तक मिली मुझको,
तुमसे सिर्फ निराशा है,
फिर भी पाने को प्रेम ,
तुम्हारा बंधी मन में आशा है,
प्रिय तुम्हारा प्रेम ही , मेरे जीवन का सहारा है,
इस ‘दीपक’ की ज्योती तू, ही मेरी नाव का किनारा है,
इतनी निराशा?
ReplyDeleteइतनी मायूसी ठीक नहीं.. मुस्कुराइए
ReplyDeleteअरे भई, इतनी नाउम्मीदी ठीक नहीं...
ReplyDeleteरचना तो बहुत ही सुदंर है पर ऐसी दीवानगी
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