Monday, October 11, 2010

कब तक प्यासी धरती से, अब और हम तरसगे,

जिन पर टिकी हुई हें आँखे  वो सावन कब बरसेगे,
कब मिलोगे तुम हमे कब पास मेरे आओगे,
कब बैठोगे संग मेरे कब मेरी प्यास बुझाओगी,
कितना और समझाऐ मन को दिलाशे हम देगे,
जिन पर टिकी हुई हैं  आँखे वो सावन कब बरसेगे,
तुमको देखा तुमको चाहा और नही कुछ चाहा है  ,
झाँक  के देखो इन आँखों में चेहरा एक समाया है ,
होठ खुले जब भी मेरे नाम तेरा ही बस लेगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
कब देखोगे छूकर मन को अपने मन की धडकन से,
और कब तक अन्जान रहोगे मेरे दिल की तडपन से,
‘दीपक’जलाया तेरे प्यार का अब बुझने ना हम देगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,

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