Monday, October 11, 2010

मै   भॅवर तुम किनारा ,
फिर भी ,
तुमको पाने की,
समा जाने की,
कितनी ही चाहत,
मन में पलती है ,
जानता हूँ ,
तुम तारा हो में पतंगा,
देखता हूँ तुम में भी,
शमा की झलक,
तुम्हे पाने की,
खो जाने की,
आस मन में कर वट बदलती हें,
तुम दरिया में सहरा,
तुम्हे पाऊ पास जाऊ,
कैसे मगर कैसे ,
मै  फूल घने  जंगल का,
आती नही एक किरण जहाँ
देखता हूँ  एक बिंदू ,
चमकता हुआ,
घने  जंगल के ऊपर,
प्रकाश तुमहारा मुझ तक ,
कभी न पहुँच  पायेगा,
बस आस है ,
हर साँस है
कभी तो आखिर कभी तो,
होगा कुछ ऐसा,
कोई  किरण मुझ  तक ,
आ जायेगी,
मै पा जाऊगा तुम्हे ,
और तुम्हारे
निर्दोष,
निष्छल ,
निष्कपट,
प्रेम को,
जो जीवित है ,
बस मेरे मन में,
हर धडकन में,
हर सांस  में,
तुम्हारे ही,
पवित्र प्रेम  की,
आस का,
एक दीपक जलता है ,

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति…………शायद टाइपिंग मिस्टेक है वो सही कर लीजिये------- "में " इसे" मैं " कर लीजिये।

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