ना नेता की सिफारिश
ना रिश्वत देने को पैसे
नौकरी मिले भी तो कैसे ?
सब के सब धुरन्धर है
सबके पास हैं डिग्री
सबमे है असीम प्रतिभा
और हौसला कुछ कर गुजरने का
ऊचाईया छू लेने का,
परन्तु जब,
स्थान एक अर्जी हजार
सभी योग्य
तो क्या करे अधिकारी
किस को दे नौकरी
सभी समान प्रतिभाशाली
ऐसे मे
नेता की सिफारिश या रिश्वत
एक मात्र
“सहायक योग्यता “ है
जो हमे भीड से अलग करती है
और नौकरी दिला सकती है
आपने तो मेरे दुखते रग पर हाथ रख दिया....
ReplyDeleteअच्छी रचना, वास्तविकता के काफी नज़दीक...
मेरे ब्लॉग पर..
विश्व की १० सबसे खतरनाक सडकें.... ...
हाँ जी... सही ही है... और रिश्वत या सिफारिश में जिसकी जितनी बड़ी योग्यता उसको उतनी जल्दी नौकरी...
ReplyDelete... bahut badhiyaa ... shaandaar !!!
ReplyDelete“सहायक योग्यता “ है
ReplyDeleteजो हमे भीड से अलग करती है
और नौकरी दिला सकती है
....................कटु सत्य।
गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
ReplyDelete4/10
ReplyDeleteबात कडवी है पर सच है.
प्रतिभाशाली को ही कुर्सियां मिलने की गर परंपरा शुरू हो गयी तो पूरे देश में खाली कुर्सियां ही नजर आएँगी.
चलिये किसी ने तो बेचारे अधिकारी की उलझन को समझा उसके फैसले के गणित को सही बताया |
ReplyDeleteकड़ुवा है पर सच है.
ReplyDelete@ शेखर भाई ,
ReplyDeleteहमारी भी यही रग दुखी थी कभी,
यह सहायक योग्यता ना होने कारण ही आज तक नौकरी ना पा सके
@ पूजा जी,
आप ठीक कहती है
@ उदय जी,
धन्यवाद
@ संजय भास्कर भाई,
यकीन तो करना ही पडेगा, यही मेरा अनुभव है
@ उस्ताद जी,
आज आप बहुत दिनो के बाद आये है
कविता का मूंल्याकन कर नम्बर देने के लिए धन्यवाद
आप सबका ब्लाग पर आकर उत्साह वर्धन करने के लिए
धन्यवाद
काश कोई "सहायक योग्यता" इस बाबा को भी मिली होती तो आज बाबू तो होते.......
ReplyDeleteमौलिक लेखन के लिए साधुवाद.
@ anshumala ji,
ReplyDelete@ Bhushan ji,
@ DEEPAK DUDEJA ji,
आपका ब्लाग पर आकर उत्साह वर्धन करने के लिए
धन्यवाद
मेरा भी पहला कदम है यहाँ...एक नौजवान की कसक का नंगा सच है यह और कड़वा बयान भी! उसताद जी की बात भी सही है!!
ReplyDeleteदीपक,
ReplyDeleteसच है कि जिसके पैर में बिवाई हो, वही दर्द जानता है। तुमने जो लिखा, वह सच है लेकिन दोस्त इतना भी जान लो कि यही पूरा सच नहीं है।
ठीक है हमारी बात पुरानी हो गई, आज जितना कम्पीटिशन नहीं था बीस साल पहले, लेकिन ऐसा आसान भी नहीं था कि नौकरी सबको मिल ही जाती थी। तुम्हारे इस भाई ने दो साल में दो जगह से रेजिग्नेशन देकर तीसरी जगह नौकरी की और उसके बाद भी तीन जगह के सैलेक्शन लैटर(प्रूफ़ नहीं है अगर मांगोगे तो, प्रेमपत्रों की तरह ऐसी चिट्ठियों को भी नष्ट करने में दर्द भी आता है और मजा भी) आये थे। सिफ़ारिश जरूर थी अपने पास, किसी नेता की नहीं, ऊपर वाले की कह सकते हो या सच्चाई की कह सकते हो। था यार, उस समय मैं एक्दम सच्चा, एक्दम खरा, खोटा तो बाद में हुआ हूँ:) वैसे भी कोई नेता मेरे जैसे की सिफ़ारिश क्यों करेगा और मैं ही क्यों करवाऊँ सिफ़ारिश किसी से?
प्यारे, ये मत सोचना कि जला रहा हूँ, या अपनी महिमा गा रहा हूँ - मतलब सिर्फ़ ये है कि निराश होने की जरूरत नहीं है। जब तक एलिजिबल हो, सिर्फ़ प्रयास करते रहो क्योंकि अपने हाथ में सिर्फ़ कोशिश करना ही होता है।
मुझे बात काटने में मजा आता है, छोटे हो मुझसे इसलिये भाषण दे दिया है। याद करोगे कभी, देख लेना।
निराशा और नकारात्मक विचारों को बिल्कुल हावी मत होने दो। अपनी क्षमता पहचानो, बढ़ाओ और उसके अनुसार लक्ष्य निर्धारित करो।
शुभकामनायें।
समस्या तो है साहब और बहुत बड़ी है.....अच्छी बात कही...
ReplyDeleteएक व्यंग्य मेरा भी इसीस सन्दर्भ में....
http://swarnakshar.blogspot.com/
@ मो सम कौन,
ReplyDeleteबडे भाई मै तो सोच ही ये रहा था कि भाई साहब कुछ इसी तरह
की बात कहेंगे, अच्छा लगा आपका समझाना। और रही बात याद
करने तो आपको हम भूलेंगें ही कहँा जो याद करने की जरूरत पडे।
बस आपका प्यार व आर्शिवाद बना रहे।
@ सम्वेदना के स्वर जी,
भाई साहब स्वागत है आपका हमारे गरीबखाने मे,
आने के धन्यवाद, आशा करता हूँ आते रहेंगे
@ राजेश कुमार नचिकेता जी,
आकर विचार व्यक्त करने के लिए आभार
आते रहियेगा
bahu sunder
ReplyDeleteनेता की सिफारिश या रिश्वत
एक मात्र
“सहायक योग्यता “ है
जो हमे भीड से अलग करती है
और नौकरी दिला सकती है
theek kaha hai.
ReplyDelete“सहायक योग्यता “ है
ReplyDeleteजो हमे भीड से अलग करती है
और नौकरी दिला सकती है
बहुत ही सुन्दर बात कह दी आपने ....बेहतरीन ।
अच्छा, मतलब पहले ही जानते थे कि भाईसाहब अपनी ढपली अलग बजायेंगे?
ReplyDeleteहा हा हा, अच्छा लगा नजरिया। इतने आराम से सुन लिया भाषण। लेकिन मैं ऐसा ही सोचता हूँ दीपक। फ़िर से शुभकामनायें।
@ पुरविया जी,
ReplyDelete@ मृदुला प्रधान जी,
@ सदा जी,
ब्लाग पर आकर कविता की सराहना करके हौसलाअफजाई
के लिए शुक्रिया।
@ मो सम कौन,
भाई साहब आपका भाषण ही मेरे लिए प्रेरणाश्रोत है
भीड़ से अलग करने की योग्यता ....सिफारिश या रिश्वत ...कटु सत्य
ReplyDeleteअच्छी रचना
जी
ReplyDeleteखोल दी गांठें !!
वाह बहुत खूब
नेटकास्टिंग:प्रयोग
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Editorials
baat rachna ki karu to behtar. samaj ki ek badi burai ko bahut hi satik andaz me pesh kiya hai. lekin mai is se sahmat nahi hu. bura mat sochna dipak bhai, lekin tum ne hi kaha hai hamare paas ye digri nahi thi isliye naukri nahi mili. iska matlab agar hoti to tum bhi is bahti ganga me haath dhone se baaj nahi aate. dost ye ek aisi parampra hai jisko hum hi palte hai aur hum hi bhugatte hai. jarurat hai ise khatam karne ki. kayon ki tumhare saath mai bhi aise hi logo me se hu. aisa nahi tha ki me paise nahi de sakta tha par maine than liya hai paise dekar job nahi karni. agar bura laga ho to maaf karna.
ReplyDelete@ संगीता स्वरूप (गीत) जी,
ReplyDelete@ गिरिश जी,
आप आज पहली बार आये है आप का स्वागत है
@ एहसास भाई,
भाई बुरा मानने वाली तो कोई बात ही नही है
मै भी तुम्हारे ही जैसा हूँ
ब्लाग पर आकर कविता की सराहना करके हौसलाअफजाई
के लिए शुक्रिया।
Apne ek katu satya ko udbhasit kiya hai.Plz. visit my blog.
ReplyDeleteसही कहा आपने , " एक अनार सौ बीमार " वाली स्थिति है ।
ReplyDelete@ Prem Sarover ji
ReplyDelete@ ZEAL Ji,
आपका ब्लाग पर आकर उत्साह वर्धन करने के लिए
धन्यवाद
हो तो यही रहा है आजकल
ReplyDeleteरचना भी सच और मो सम कौन की टिप्पणी भी। सिफारिश, कनैक्शन, आरक्षण, रिश्वत आदि से सबको फर्क न भी पडे, लेकिन जिन्हें पडता है उन्हें तो पडता ही है - एक लीक काजल की लागी है पै लागी है।
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