Tuesday, July 29, 2014

सहारनपुर

प्रिय मित्रो, प्रणाम
आज बहुत दिनों के बाद कोई कविता बनी है कविता क्या दिल का दर्द बाहर आया है


फीकी हो गयी मिठास शीर की 
चटपटी न लगी आज  फुलकियां 
हर निवाले के संग आँखों में 
आती, जलती दुकानो की झलकियाँ 

शर्मसार है आज  इंसानियत यहाँ 
क्या झांकते हो खोलके खिड़कियां  ?

सलामत दोस्त को घर पहुचाना कसूर था 
बड़ी बहादुरी दिखाई चला के उसपे गोलियाँ 

एक मुद्दत लगी थी उसको रोजी चलाने  में 
पल में जलवा  दिया  पाने को सियासी सुर्खियाँ 

क्या हिन्दू क्या मुसलमां सब एक से है 
तुम सबको प्यारी है तो सिर्फ अपनी कुर्सियाँ