स्मृति के पन्नो पर
चित्र एक अंकित है,
कई रंगो से सजा
प्रेम तुम्हारा संचित है,
तरंगें उठती ज्यो गर्भ सागर से,
तोड देती तटो का सीना,
मन मे उठती भावनायें मेरे,
भेद कर धर्य का सीना,
तुम मिले मुझको ज्यों
प्यासी धरा को जल की धार,
निर्धन मन कुबेर हो गया
दिया मोती सा प्रेम अपार,
सुख के पल बुलबुले पानी के
पल मे बनते फूट जाते,
सम्भाले रखा ह्रदय मे मैने
पल थे जो हंसते गुदगुदाते
छूट गया अब संग तुम्हारा
टूट गया मिलन का त्तार,
मिट गयी गाढे प्रेम की रेखा
मिट सका न उभार,
सजकर नववधू सी
वेदनायें चली आती हैं,
चूभती शूल सी मन को
तेरी स्मृति कराती है,