Friday, December 31, 2010

एक फूल

एक फूल चुन के लाया हूँ मै दिल के गुलशन से,
पत्तिया इसकी मेरे प्यार की रंग हें मेरी धडकन के,
रस भरा इसमें जितना जितनी खुशबू  समाये,
उतनी खुशियाँ जीवन में सनम आपके आ जाये,
चाहत है यही आप सदा इसी तरहा खिले,
पल पल रहो में आपकी आशाओ के दीप जले,
ईद सा हो दिन आपका दिवाली सी रात,
मन ये देता आपको दुआओ की सोगात,
हर कामना जीवन की हो जाये आपकी पूरी,
कभी  ना रहे अपकी कोई आरजू अधूरी ,
वो मिले हर खुशी दिल आपका जिसपे मरता है
आपके लिए इतनी सी दुआ ये ‘दीपक’ करता है ,

Monday, December 27, 2010

सब ठीक है

सबसे पहले तो आपको प्रणाम और बहुत दिन तक गैर हाजिर रहने के लिए क्षमा। आज 22 दिन हो गये हमारा नेट बंद पडा है, जितने चक्कर मैने ऐक्सचेंज के लगा लिये है उतने तो शायद मजनू ने लैला के घर के भी ना लगाये हो, या फिर इतनी बार मन्दिर मे जाता तो शायद भगवान भी दर्शन दे देते। पर वाह रे BSNL तुम प्रसन्न ना हुये।


इन बाईस दिनो मे कितना तडपा हूँ बस मुझे ही पता है, बहुत गुस्सा भी आया अपने BSNL पर और अपने आप पर भी। BSNL पर तो उसकी खराब सर्विस के लिए और अपने आप पर अपनी साधन हीनता के लिए। आज के मोबाईल युग मे भी हम लैंडलाईन के चक्कर मे फंसे है लेकिन करे भी तो क्या गरीब आदमी है हमारे पास मल्टीमिडिया सेट नही है कोई भी नया मल्टीमिडिया हैंडसेट पाँच छः हजार से कम नही है और ये मेरे बजट से बाहर है।

ये ब्लोगिंग इश्क से भी खतरनाक बिमारी है ना तो आशिक को अपने महबूब को देखे बिना चैन आता है और ना ही ब्लागर को ब्लाग पढे या लिखे बगैर। इस ब्लोगिंग ने हमे मंगता तक बना दिया है जिससे बात करना पसंद ना था उससे मोबाईल मांगना पड गया और जले पर नमक ये कि लोगो ने देने से मना कर दिया। खैर इन दिनो मे अपने परायो की भी काफी पहचान हुई पचासो लोगो मे से एक दिन एक ने अपना मोबाईल दिया वो भी बस 1 घंटे के लिए बस उसी घंटे मे पोस्ट (सुधर जाओ) भी डाल दी और कई जगह टिप्पीया भी लिए।

आज एक भाई साहब अपना मोबाईल मेरी दुकान मे चार्जिंग के लिए लगा कर गये (दो दिन से गाँव मे लाईट भी नही है) तेा हमने भी मौके का फायदा उठाने की सोच ली धडाधड पोस्ट लिखमारी अपने दोस्तो को बताने के लिए कि मै कुशलपुर्वक हूँ। और जैसे ही मेरा नेट चलेगा मै आप लोगो की महफिल मे फिर से हाजरी लगाऊगा।

Wednesday, December 15, 2010

सुधर जाओ

जानता हूँ,
आपकी ही सरकार है
खानदानी लैठत हो
इस जनता पर
आपकी ही लठमार है
मानता हूँ
आपके आगे कौन बोलता है
अमीर चमचा है
गरीब तो जन्मजात गूंगा है
वो कहाँ लब खोलता है
जानते हो,
अब तुम्हारे ही राज मे,
कुछ सिरफिरे पैदा हो गये हैं
जिन्हे आता है मजा
नमक लगाने मे तुम्हारी खाज में
तुम्हारी ही सरकार के लाये कम्पयूटर को
हथिहार बना लिया है
ब्लाग बनाकर
हर सिरफिरा बोल रहा है
इस उम्मीद से
कि तुम सुधर जाओगे
(कुत्ते की पूछँ कहाँ सीधी होती है)
सुधर जाओ वर्ना
गुजर जाओगे


Monday, December 6, 2010

जूँ

जो नही नहाते
दुनिया दारी के जल मे,
इमानदारी नामक जूँ
हो जाती है उनके सर मे,
परेशान रहते हैं हाथ भी
और बाल (गोपाल) भी
जब भी करते है कोशिश
अन्य-आय की
तभी जूँ काट लेती है
हाथ कुछ लेने के ब्जाय
खुजलाने चला जाता है


जो रोज नहाते है
आल क्लीयर लगाते है
बाल भी खुश
हाथ भी खुले खुले
औरो के मन भी भाते है
(ये और बात
वो रब को मुंह न दिखा पाते है)

Wednesday, December 1, 2010

दीपक जले

दीवाली पे कितने दीपक जले
कोई ना जले ज्यो दीपक जले
हूक उठती एक मन मे
देख अन्धेरा अपने ही तले
वो ना आये देर रात तक
जिनके लिए हम शाम से जले
औरो को राह दिखा दी लेकिन
खुद रहे वही पे खडे
बाँहे पसारे खडे रहे हम
ओरों से मिले वो जा के गले
जिसको चाहा उसने ना चाहा
प्यार की और क्या सजा मिले
उसके सितम की इंतहा है ये
दीपक तरसे अपनी ही ज्योति के लिए