Thursday, November 17, 2011

धूल

कितने ही रास्तो से,
आती आज भी उड कर धूल,
लग जाती मेरे सीने से,
स्मॄत हो आते 
वो क्षण,
जब चले थे उन पर 
थाम कर हाथ 
एक दूजे का,

पूछ्ता है वो पेड
पत्तियाँ हिलाकर,
छाँव मे जिसकी कटती थी
सारी दोपहरी,
" वो जो,
पोछँती थी चुनरी से अपनी,
तेरे माथे पे आयी बूंदों को,
कहाँ है"

ये फूल बसन्ती सरसो के,
कहते,
" जो हमे तोड कर भर मुठठी 
खिलखिलाकर,
तुम पर फेंकती और ताली बजाती,
वो कहाँ है"

क्या कहूँ क्या उत्तर दूँ,
उन सवालों का,
जो जला देते इस मन को,
और विवश करते है 
आँखो को बरसने के लिये

Monday, November 7, 2011

अनाड़ी

बहुत दिनों से ब्लाग से दूर हूँ , कारण मैं क्या बताऊ शायद ये कविता कुछ बता दे 


दो बैलो की गाड़ी 
दोनों ही अनाड़ी


एक खीचे पूरब की ओर 
दूजा पच्छिम को लगाये जोर 
समझ दोनों की अलग 
फिर भी बंधी दोनों की डोर 


एक बिना हरे के भूखा 
एक को सब्र देता है भूसा
एक नांद  से दोनों बंधे है 
खाने को मिले जो रूखा सूखा 


साथ है रहना, दोनो ही जाने 
फिर भी दूजे की बात न माने 
बिना बात तकरार करे वो 
पागल भये, वो हुए दीवाने 


प्रेम दोनों तरफ पलता है 
तभी तो पहिया सही चलता है 
कदम लडखडाते है जब एक के 
तो दूजा एकदम संभालता है 


यूं ही चलते चलते 
हो जायेंगे खिलाडी 
दो बैलो की गाड़ी 
दोनों ही अनाड़ी

Wednesday, September 28, 2011

आतंकी उवाच

आतंकी  उवाच 

कायर हो तुम, और सरकार  तुम्हारी निठल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                              कभी कोर्ट में हम कभी संसद में बम बिछाते है
                              और तुम्हारे जांबाजो के हाथो हम पकडे भी जाते है
                              फिर बन मेहमान तुम्हारी जेलों में मौज उड़ाते है
                              अपने घर में भुखमरी है, यहाँ बिरयानी खाते है
हमें किसी का डर नहीं, हम तो काली बिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                              झूठे है सब ग्रन्थ तुम्हारे किया झूठा प्रचार  है
                              जिनमे लिखा है हर देवता के हाथो में तलवार है
                              वंशज होते यदि राम के रावण को मार गिरा देते
                               केश  द्रोपदी के धोने को रक्त कोरवो का देते
देखो आज इतिहास तुम्हारा उडाता तुम्हारी खिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                             तुम्हारे घर में अजगर से हम कुंडली मारे  बैठे है
                             हमें बचाने को यार हमारे तुम्हारी संसद में बैठे है
                             तुम्हारे देश के विभीषण ही तो हमारे अन्नदाता है
                             क्योकि उनके घर का राशन हमारे देश से आता है
पाकिस्तान है डंडा तो देश तुम्हारा गिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                            हमसे यदि लड़ना है तो वीर सुभाष बनना होगा
                           गाँधीगिरी को छोड़ कर सरदार पटेल सा तनना होगा
                           वर्ना तुम रोज यूं ही अपने जख्म सहलाओगे
                            हम तुम्हारे सर पे बम फोड़ेंगे, तुम कुछ न कर पाओगे
बस खयाली पुलाव बनाती जनता तो शेखचिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                             

Friday, September 2, 2011

बोल सखी

बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ 
जीवन हाला किस विधि पीऊँ 
प्रिय मेरे ने कदर न जानी 
पागल भई मैं हुई दीवानी 
किस विध मन के ज़ख्म को सीऊं 
बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ  


                     मनमीत मेरे ओ प्राण प्यारे 
                     सपने तोड़ गए तुम सारे 
                    बिखर गयी वादों की माला 
                    टूट गया प्रेम का प्याला 
                    मिट गया सब, एक  मैं  ही बची हूँ 
                    बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ  



अंखिया उन दर्शन की प्यासी 
मैं हूँ जिन चरणों की दासी 
जाने किसकी याद में खोये 
सखी वो भूल गए है मोहे 
अब कैसे उनकी सुध बुध लिऊ 
बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ    
 

Wednesday, July 27, 2011

जिंदगी खिलती है गुलज़ार बनके

जिंदगी खिलती है गुलज़ार बनके 
तुम देखो तो इसको  प्यार करके
तुम्हारे भी नाज़ उठाएगा कोई 
तुम देखो तो कभी इकरार करके 
मुंह मोडना जिंदगी से कोई बात नही 
खुश रहो हर गम से दो चार करके
अपनी जिंदगी को तुमने जाना ही कब है 
तुमने देखा ही कहाँ कभी प्यार करके 
कोई शख्स है तुम्हारी जरूरत है जिसे 
सपने तुम्ही से है  जिसके संसार भर के 
तुम जिंदगी हो किसी की कोई तुम्हारा है 
देखलो कुछ दूर तुम मेरे साथ चल के 

Wednesday, July 13, 2011

तो क्या करें

उन की याद आने से होती है आँख नम, तो क्या करें
चलते हुए उनकी गली में रुक जाते है कदम, तो क्या करें
उन को भूल जाने की सलाहे तो बहुत मिली
पर ये दिल न माना बेशरम, तो क्या करे
यूं तो चाहने वाले हमारे भी बहुत है
पर उनके ही दीवाने हुए हम, तो क्या करे
एक नज़र वो हमें देखते भी नही 
उनके दीदार की ही फिराक में रहे हम, तो क्या करे  
 हम फोन भी करे तो वो उठाते नही 
उनकी मिस काल में भी है दम, तो क्या करे

Monday, June 27, 2011

प्यार और जख्म

उन जख्मो को कुरेदने में मज़ा आता है

जख्म जो भी तेरी याद दिला जाता है

छेड़ता हूँ जख्मो को, तुम्हे भूल न जाऊ कहीं

वक्त का मरहम हर जख्म सुखा जाता है

बंध भी जाते किसी रिश्ते में तो क्या होता

प्यार पे आ के ही हर रिश्ता टिक जाता है

तुमसे अलग हो के मैं जी तो रहा हूँ

नाम कृष्ण का अब भी राधा के बाद आता है


Friday, June 10, 2011

कब तक प्यासी धरती से


लगभग १५ दिन से बिजली व् नेट की प्रोब्लम के कारण आप सब से न जुड पाने के लिए क्षमा के साथ एक पुरानी रचना प्रस्तुत है 

कब तक प्यासी धरती से, अब और हम तरसगे,
जिन पर टिकी हुई हें आँखे  वो सावन कब बरसेगे,
कब मिलोगे तुम हमे कब पास मेरे आओगे,
कब बैठोगे संग मेरे कब मेरी प्यास बुझाओगी,
कितना और समझाऐ मन को कितने दिलाशे हम देगे,
जिन पर टिकी हुई हैं  आँखे वो सावन कब बरसेगे,
तुमको देखा तुमको चाहा और नही कुछ चाहा है  ,
झाँक  के देखो इन आँखों में चेहरा एक समाया है ,
होठ खुले जब भी मेरे नाम तेरा ही बस लेगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
कब देखोगे छूकर मन को अपने मन की धडकन से,
और कब तक अन्जान रहोगे मेरे दिल की तडपन से,
‘दीपक’जलाया तेरे प्यार का अब बुझने ना हम देगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,

Tuesday, May 24, 2011

अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे

अन्न माँगा, दिया हमने 
आबरू ना  दे पाएंगे 
                      रक्षक ही  जब भक्षक बने 
                      अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 

महंगा बीज , महंगा खाद 
फिर भी सस्ता है अनाज 
ग़ुरबत में जी लेंगे लेकिन 
देश को न भूखा सुलायेंगे 
                                               
                     रक्षक ही जब भक्षक बने 
                     अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 

 प्रकृति की मार हम पे 
पड़ती रहती थम थम के 
पसीना तो बहा सकते लेकिन 
खून कब तक बहायेंगे 
                                    
                    रक्षक ही जब भक्षक बने 
                     अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 

भू माफिया औ  भ्रस्ट सरकार 
मिलकर  कर  रही अत्याचार 
अब तक सहते  रहे   लेकिन 
अब और  ना सह  पाएंगे 
   
                      रक्षक ही जब भक्षक बने 
                     अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 
           


Saturday, May 14, 2011

रिश्ते

कितना आसान है 
रिश्ते बनाना और तोड़ देना 
मन में बसना - बसाना 
 और  फिर 
छोड़ देना  
तोड़ देना मन को 
या खिलोने को  
सरल है
परन्तु जोड़ना  ?

क्या रिश्ते  सचमुच टूटते है ?
क्या सचमुच दूर हो सकते है ?
किसी अपने   से ,
 क्या रिश्ते बनने- टूटने  के  बीच 
जो अंतराल है , 
वो कोई अहमियत नहीं रखता ?
व्यर्थ है वे पल जो 
सुख में मुस्कुराते और दुःख में रोते है 
व्यर्थ है वे बातें जो घंटो होती है ?

नहीं, ये सब व्यर्थ नहीं हो सकता 
कोई भी रिश्ता टूट नहीं सकता 
हो सकता है 
बातें बंद हो जाये 
मुलाकते बंद हो जाये 
या फिर 
एक नज़र देखना भी 
 परन्तु 
रिश्ते  हमेशा बने रहते है 
हमारे  मन में,
हमारी बातों में, 
हमारी स्मृति में ,



Sunday, May 1, 2011

शादी की वर्षगांठ पर ज्योति के लिए

संग तुम्हारे है कितनी बहारे 
दिए तुमने  ही सपने प्यारे 
 मुस्कान बन छाये लबो पर 
आँखों में भर दिए हंसी नज़ारे 
साथ यूं ही तुम रहो हमेशा 
दूर हो के एक पल न गुजारे 
न किसी और की मैं आस करू
न कोई बसे मन में तुम्हारे 
तुम्हारे लिए ही धडके ये दिल 
हर धडकन तुमको ही पुकारे 
धन्यवाद तुम्हे हे संगिनी 
दिए सुन्दर दो पुष्प प्यारे 

Monday, April 18, 2011

तेरी यादों में

हम तेरी यादों में इस कदर खो जाते है
याद करते है तुमको और रो जाते है
लोग कहते है प्यार में नींद नहीं आती
सपने में तुझे मिलने को हम शाम से सो जाते है
सुबह उठ के मुंह धोने की जरूरत किसे ?
मेरे आंसू ही मेरा मुंह धो जाते है
किस किस लम्हे की जड़ निकालू दिल से
वो जब भी  दीखते है नया बीज बो जाते है
मिल जाते है वो हमें हर एक मोड़ पर
दुनिया की भीड़ में अक्सर लोग खो जाते है ?


Friday, April 8, 2011

अन्ना हजारे

भगीरथ ने की थी तपस्या
संभव करने असंभव  को
उनके  पुरखो की
अतृप्त आत्माओ की 
 प्यास बुझाने
उतर आना पड़ा था
गंगा को
झुक जाना पड़ा था भगवान्  को


एक और भगीरथ
लगा है  तपस्या में
लाना चाहता है लोकपाल की गंगा
करोडो अतृप्त भारतीयों के लिए
जिनकी आत्मा तड़प रही है
भ्रष्टाचार के प्रहार सहते

हमारे  कंठ सूख रहे हैं
भ्रष्टाचारी   मजे लूट रहे है
खुले सांड से घूम रहे है
आखिर कब तक ?
अब तो गंगा को आना ही पड़ेगा 
तृप्त करने करोडो आत्माओ को
सरकार चाहे जितने जोर लगा ले
इन्द्र की तरह
चाहे जितने कोप बरसा ले
ये भगीरथ नहीं हटेगा
ला कर ही रहेगा गंगा को

Thursday, March 31, 2011

ग़ज़ल

वो जब से पास आने लगे है
मेरे जख्म मुस्कुराने लगे है
जागने लगी सोई हसरते मेरी
वो सपने नए दिखने लगे है
भूल बैठे थे जिस मधुर गीत को
गीत वो फिर हम गुनगुनाने लगे है 
कभी अंधेरो कभी उजालों की तरह
वो मुझसे नज़रें मिलाने लगे है
होता नहीं यकीन अंपनी आँखों पे
अचानक सामने वो मुस्कुराने लगे है
बुझ जाना ही जिनकी किस्मत बन गया था
दीपक वो फिर से टिमटिमाने लगे है

Tuesday, March 22, 2011

बात आयी तेरी

बातो ही बातो में जब बात आयी तेरी
यादों से तेरी महकी यार तन्हाई मेरी
                 रंज नहीं दिल में तू पास नहीं मेरे
                 लगने लगी है प्यारी अब जुदाई तेरी
बड़े प्यारे लगते हो  मिलते हो ख्वाबो में
नींद से हो गयी जैसे कुडमाई  मेरी
                 बेशक हो दूर मुझसे पर दूर नहीं लगते
                 मेरे दिल में देती है धड़कन सुनायी तेरी
नाप ली दुनिया ने गहराई  समुन्दर की
देखेगी क्या वो चाहत की गहराई मेरी
                तरसता है क्यों "दीपक"  ज्योति के लिए
                कब तक रहेगी दूर वो है परछाई  मेरी



Tuesday, March 15, 2011

ग़ज़ल

कई दिनों से व्यस्त होने के कारण कुछ ब्लोग्स पर जाना नहीं हुआ, और कुछ पर गया  भी तो टिप्पणी नहीं कर पाया, कुछ पोस्ट्स  को मोबाइल पर पढ़ा तो अंग्रेजी में टिप्पणी की इस के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ,

होली आने वाली है तो हम भी थोड़ी मस्ती कर ले, आप लोगो ने बहुत सी ग़ज़ल पढ़ी होंगी  और सुनी होगी,  कभी सोचा है  ग़ज़ल कैसे बनती है?  नहीं ........ तो सुनये

लड़की छेड़ी लगा चांटा तो ग़ज़ल बनी
फेल हुए पापा ने डांटा तो ग़ज़ल बनी
भोंकता रहा देर तक वो मुझे देख कर
उनकी गली के कुत्ते ने काटा  तो ग़ज़ल बनी
वो दूर रहे मझसे तो कोई बात नहीं
पास आकर औरों से भिड़ाया टांका तो ग़ज़ल बनी
बड़े शोंक से दिलाई हाई हिल  सैंडिल उनको
बाज़ार में वो ऊँची लगी मैं नाटा तो ग़ज़ल बनी
दावतों पे दावत देते रहे दोस्तों को
हो गया जेब को घाटा तो ग़ज़ल बनी
खुले आम गुलाल लगाया परायी जायी को
फिर चप्पल बजी बाटा तो ग़ज़ल बनी


होली की शुभकामनाये

Sunday, March 6, 2011

प्रेम की परिभाषा

प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका आजतक


प्रेम वो है जो
दिखता है प्रिया की आँखो मे
कोई प्यारा सा उपहार पाकर
या प्रेम वो है जो
सुकून मिलता है आफिस से आकर
तुम्हारी मुस्कान पाकर
प्रेम वो है जो
चाँद पर जाने की बात करता है
केशो को घटा, आँखो को समन्दर
गालो की तुलना गुलाब से करता है

या वो
जो बचाता है पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक
प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक


Monday, February 28, 2011

मै निठल्ला हूँ

मै निठल्ला हूँ
दिन भर कुछ  नही करता
बस सोचता हूँ
बेमतलब की बातों मे
मतलब खोजता हूँ
जब भी टी0वी0  खोलता हूँ
विज्ञापन दिखाई देता है
अर्धनग्न लडकी
साबुन दिखा रही है
या शरीर, समझ नही आता है
शैम्पू के विज्ञापन मे
टांगे दिखा रही है
टूथपेस्ट बेचने के लिए
होठो से होठ मिला रही है
बच्चे चाव से देखते है
मम्मी शरमा रही है
थोडी देर बाद
गीत चल जाता है
उसमे भी नग्न नायिका
नायक नजर आता है
टी0वी0 बन्द कर
अखबार खोलता हूँ
“एक और घोटाला हुआ“
“एक जोडी प्रेमी जलाया“
“सदन बंद रहा“
“विपक्ष ने हल्ला मचाया“
रोज की तरह यही
हेडलाईन थी आज भी
जो कल हुआ था
आज भी हुआ
और अखबार रख देता हूँ
सोचता हूँ
जो हुआ, क्यो हुआ
जो हो रहा है क्यो हो रहा है
क्या यही सब होगा भविष्य मे भी
क्यो नही आती ऐसी खबर
 कि लगे हाँ अच्छा हुआ
क्यो नही दिखता कुछ ऐसा
जिसे देख मन प्रसन्न हो
नई पीढी कुछ अच्छा सीखे
कुछ भला हो इस देश का
लेकिन कैसे
मै सोचता हूँ
सिर्फ सोचता हूँ
करता कुछ नही
क्योकि
मै निठल्ला हूँ

Monday, February 21, 2011

तुम होगी चंचल, सुकोमल

आज एक पुरानी कविता झेलिये


तुम होगी चंचल, सुकोमल
अप्सरा कोई इन्द्र सभा की
मुख पर होगी अनन्त लाली
ज्यो रवि की प्रथम प्रभा की
आकाश से चाँदनी रात मे
आओगी किरणो के रथ पर
पग पग पुष्प् गिराएंगे  देव
प्रिय तुम्हारे पथ पर
ऐसा कहाँ सोचा है मैने



सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
किताबो को सीने से लगाये
बार बार पोछती माथे की बूंदो को
एक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर
तुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने



22.02.2002

Saturday, February 12, 2011

किसी दिन


देखूँगा किसी दिन झाँककर जरूर तेरी आँखो मे
अपनी आँखो के आँसू पहले मै सुखा लूँ
                    भर लूंगा तुझे भी बाँहो मे किसी दिन
                   सिसकती बहनों को सीने से पहले मै लगा लूँ
सहलाऊंगा तेरे भी माथे को हमसफर
अपनी माँ के पैरो को पहले मै दबा लूँ
                  उठाऊंगा तुझे भी अपनी गोद मे किसी दिन
                  बोझ पिता के कंधो का पहले मै उठा लूँ
उठाऊगाँ तेरा ही घुघंट एक दिन जरूर
डोली अपनी बहनो की पहले मै उठा लूँ
                  तेरी ही हाथ थामूगाँ वादा है ये मेरा
                 अपने आप को इस काबिल पहले मै बना लूँ

Tuesday, February 8, 2011

मेरी धरती मेरी माँ

तेरा सीना चीरते चीरते
पुरखे मेरे र्स्वग सिधारे
तू थकी ना अन्न देती देती
ना वे हल चलाते हारे
                  बचपन मेरा सना रहा तुझमे
                  तुझमे यौवन ने ली अंगडाई
                  तू थी, तो बसा घर मेरा
                  तुझ से ही अंगीठी जल पायी
कैसे जाने दूँ यूँ ही तुझको
तू “सरकार“ को भा गयी
कैसे करने दूँ अधिग्रहण उसे
वो डायन कितनो को खा गयी
                   मै बेटा हूँ किसान का
                   माँ हमारी है ये धरती
                  “सरकार“ बदल लो अपना इरादा
                   क्यो किसान से है पंगा करती
है क्या पास सिवाय धरते के
जिसके सहारे मै रहूँगा
(सुनो “सरकार“) मार दूंगा या मर जाऊँगा
पर माँ पर आंच ना आने दूंगा

Monday, January 31, 2011

वो पल

तुम आये
आकर चले गये
आखिरी बन गयी
पहली ही मुलाकात
कुछ कहा भी नही तुमने
और न सुना
जो मैने कहा था


उन कुछ पलो मे
सिमट कर रह गया हूँ मै
और मेरी जिन्दगी  भी
उन पलो मे
देखा है मैने
फूल को मुस्काते हुए
तारीफ सुनकर शर्माते हुए
फिर किसी डर से घबराते हुए
मन को आकाश मे घूमते
सपनो को बनते और
टूट जाते हुए


उन पलो से सीखा है मैने
सही अर्थ प्रेम का
परिभाषा जीवन की
और मजबूरिया इंसान की
जो रोकती है हमे
वो करने से जो हम चाहते है
उसे अपनाने से
जिसे हम चाहते है

वो पल
भूलाये नही भूलते
एक पल को भी नही हटता
वो दृश्य आँखो से
वो पहली मुलाकात
जो आखिरी बन गयी

Monday, January 24, 2011

सन्नाटा

गहरा सन्नाटा है
शोर से पहले
और
शोर के बाद
जानते हुए भी
खोये रहते है इसी शोर में
हजारों पाप की गठरी लादे
चले जाते है
भूल कर उचित अनुचित
मगन रहते है
इसी शोर में
जो क्षणिक है 
अन्जान  बने रहते है
उस सन्नाटे से
जो सत्य है
जो निश्चित है
हर शोर के बाद

Tuesday, January 18, 2011

तूफान

वो बन के मेहमान आया मेरे कमरे मे
कल रात तूफान आया मेरे कमरे मे
पहले तो आकर बत्ती बुझा दी
करने मुझे बदनाम आया मेरे कमरे मे
खोले केश और आँचल उडा दिया
करने मुझे परेशान आया मेरे कमरे मे
सिहरन सी एक बदन मे उठी
शरारत करने नादान आया मेरे कमरे मे
प्यारी सी आवाजे गुजने लगी कानो मे
बन संगीत सा अंजान आया मेरे कमरे मे
छुप कर आना उसकी फितरत नही
बर्बाद  करने सरेआम आया मेरे कमरे मे

Monday, January 10, 2011

शादी के बाद

मित्रो मेरी पिछली पोस्ट (शादी से पहले) ने थोडा सा कंफयूजन पैदा कर दिया है। सब मित्र सोच रहे है मै अभी तक आजाद (कुवाँरा)  हूँ , ये कविता मैने 3 जनवरी 2004 को लिखी थी। और इसका असर देखिये कि 2 मई 2004 को मेरी आजादी छिन गयी। उसके बाद मैने लंबे समय तक कोई कविता ही नही लिखी (कारण पता नही) और जो लिखी (21 अक्टूबर 2004) वो हाजिर कर रहा हूँ



क्या कहूँ कविता कोई, क्या कोई गीत सुनाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
                           दुनिया मे आया, आकर रोया,
                           रोकर फिर चुप हो गया,
                           लडा, झगडा पाप ढोया,
                           थक कर एक दिन सो गया,
                           अन्त समय भी यही थी कोशिश
                           काम अधूरे करता जाऊ,
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
                          झूठ की धरती पे मैने
                          पाप के थे बाये दाने,
                          थाली मे दुष्कर्म सजे थे
                          बन कर तरह -तरह के खाने
                          बोया था पेड बबूल का
                          तो आम कहाँ  से पाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
                        इससे लिया उसको दिया
                        कितनो का लेकर भूल गया
                        नून-तेल-लकडी की खातिर
                        अपने हाथो से मूल गया
                        है सत्य यही जीवन का
                        इसको कैसे झुठलाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
क्या कहूँ कविता कोई, क्या कोई गीत सुनाऊ

Saturday, January 8, 2011

शादी से पहले

पिता जी पुत्रवधु ले आओ
              बढने लगी है ठंड रात मे
             होता है कम्पन्न गात मे
             जल्दी कोई  लगन सुझवाओ  
             पिता जी पुत्रवधु ले आओ
 थक गया सेंक - सेंक कर रोटी
कोई अधजली तो कोई मोटी
अब तो अच्छा भोजन करवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
           बाहर मै औरों को देखूं
          पर नारी से आँखे सेंकू  
          इन हरकतो पर अकुंश लगवाओ
          पिता जी पुत्रवधु ले आओ
बार बार कोई ध्यान मे आये
मेरे काम मे बिध्न कराये,
मेरी नौकरी को बचवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
              यार मेरे सब मुझको घेरे
              कहते तुम कब लोगे फेरे
              इन ठलुओ के हाथ धुलवाओ
              पिता जी पुत्रवधु ले आओ
जो यूँ बीत गये कुछ साल
तो पक जायेंगे मेरे बाल
समय रहते मंडप सजवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ

Sunday, January 2, 2011

कुत्ता और चाँद

क्यो रे!
किसे भौंक रहा है ?
इतनी रात गये
किसे टोक रहा है
दूर दूर तक कोई नही
ना आदमी, ना अपनी बिरादरी
फिर क्यो चिल्ला रहा है
तबियत तो ठीक है?
जो शोर मचा रहा है


तुम तो पालतू हो
तुम्हे तेा दिखायी नही देता
ऊपर छत अड जाती है
मै बाहर हूँ खुले आसमन मे,
सडक पर
देखो वो चाँद
अकेला ही लड रहा है
इस घोर अन्धकार से
कोई पास नही है
पता है मुझे
नही कर सकता मै प्रकाश
उस की तरह
ना ही हाथ बँटा सकता हूँ उसका
फिर भी
बताना चाहता हूँ उसे
कि इस ठण्डी काली रात मे
वो अकेला नही है
मै भी साथ हूँ उसके