अपने सपनो को पंख लगाना आ गया
उस शर्मिली लड़की को मुस्कुराना आ गया
अपने गाँव को छोड़ के शहर क्या गयी
उसको सेल्फी के लिए मुंह बनाना आ गया
दुनिया की बाते जिसकी समझ से परे थी
उसको भी अब बातो में उलझाना आ गया
कंफ्यूज हो जाती थी जो चार क़दम चल कर
उसको भी लोगो को रास्ता दिखाना आ गया
पलकें झुका के जो हमेशा बात करती थी
जमाने से उसको नजरें मिलाना आ गया
डर है उसके दिल से मेरा प्यार न मिट जाये
शहर जा कर उसको पैसे कमाना आ गया
Monday, March 19, 2018
मुस्कुराना आ गया
Sunday, March 11, 2018
कहने को लोक लाज नही
मेरा प्रेम नही आकर्षण जो कल था और आज नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
तुमसे ही बंधी मेरे इस जीवन की डोर,
तुम्ही सांझ हो और तुम्ही ही हो भोर
तुम चाहे मानो या फिर ना मानो
तेरे सिवा इस दिल में नही बसा कोई और
घर से निकलू और घर न लौटू
ऐसी मेरी परवाज नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
अपने जीवन के इतने साल
संग मेरे बिताये तुमने हर हाल
समझ सकी न कभी मुझको
आंखों में रखे हमेशा सवाल
अपनी बातें तुम पर थोपू
ऐसा तो मेरा अंदाज नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
माना मुझको प्यार जताना नही आता
लोगो की तरह रिश्ते निभाना नही आता
समझ नही है मुझको दुनिया दारी की
पर रस्मे झूठी निभाना मुझको नही भाता
कितना भी समझा लो मुझको
आऊंगा मैं बाज़ नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
Tuesday, March 6, 2018
कुछ मुक्तक
दण्ड पे दण्ड हमको दीये जा रहे हो
किया क्या है हमने अपराध तो कहो
चूक क्या हो गयी है हमसे प्रेम में
उदाहरण कोई एक आध तो कहो
खुद को जलता हूआ छोड़ दिया हमने
कल उनसे नाता तोड़ दिया हमने
अब वो याद करे या न करे हमें
उनकी यादों से मुंह मोड़ दिया हमने
प्यार कितना भी हो वो जताते नही
हाल दिल का हमे वो सुनाते नही
प्यार उनका समझ ना आया हमे
रूठ भी जाएं हमको वो मनाते नही
यू तो होली में सब ने ही मला गुलाल
एक तूने ही ना लगाया, है यही मलाल
तुम उलझे रहे अपने ही कामो में
मेरी आँखें तरसती हुये करती रही सवाल