Tuesday, May 24, 2011

अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे

अन्न माँगा, दिया हमने 
आबरू ना  दे पाएंगे 
                      रक्षक ही  जब भक्षक बने 
                      अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 

महंगा बीज , महंगा खाद 
फिर भी सस्ता है अनाज 
ग़ुरबत में जी लेंगे लेकिन 
देश को न भूखा सुलायेंगे 
                                               
                     रक्षक ही जब भक्षक बने 
                     अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 

 प्रकृति की मार हम पे 
पड़ती रहती थम थम के 
पसीना तो बहा सकते लेकिन 
खून कब तक बहायेंगे 
                                    
                    रक्षक ही जब भक्षक बने 
                     अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 

भू माफिया औ  भ्रस्ट सरकार 
मिलकर  कर  रही अत्याचार 
अब तक सहते  रहे   लेकिन 
अब और  ना सह  पाएंगे 
   
                      रक्षक ही जब भक्षक बने 
                     अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे 
           


Saturday, May 14, 2011

रिश्ते

कितना आसान है 
रिश्ते बनाना और तोड़ देना 
मन में बसना - बसाना 
 और  फिर 
छोड़ देना  
तोड़ देना मन को 
या खिलोने को  
सरल है
परन्तु जोड़ना  ?

क्या रिश्ते  सचमुच टूटते है ?
क्या सचमुच दूर हो सकते है ?
किसी अपने   से ,
 क्या रिश्ते बनने- टूटने  के  बीच 
जो अंतराल है , 
वो कोई अहमियत नहीं रखता ?
व्यर्थ है वे पल जो 
सुख में मुस्कुराते और दुःख में रोते है 
व्यर्थ है वे बातें जो घंटो होती है ?

नहीं, ये सब व्यर्थ नहीं हो सकता 
कोई भी रिश्ता टूट नहीं सकता 
हो सकता है 
बातें बंद हो जाये 
मुलाकते बंद हो जाये 
या फिर 
एक नज़र देखना भी 
 परन्तु 
रिश्ते  हमेशा बने रहते है 
हमारे  मन में,
हमारी बातों में, 
हमारी स्मृति में ,



Sunday, May 1, 2011

शादी की वर्षगांठ पर ज्योति के लिए

संग तुम्हारे है कितनी बहारे 
दिए तुमने  ही सपने प्यारे 
 मुस्कान बन छाये लबो पर 
आँखों में भर दिए हंसी नज़ारे 
साथ यूं ही तुम रहो हमेशा 
दूर हो के एक पल न गुजारे 
न किसी और की मैं आस करू
न कोई बसे मन में तुम्हारे 
तुम्हारे लिए ही धडके ये दिल 
हर धडकन तुमको ही पुकारे 
धन्यवाद तुम्हे हे संगिनी 
दिए सुन्दर दो पुष्प प्यारे