जिन्दगी के कमप्यूटर मे आया जबसे, वायरस तेरे प्रेम का,
बंटाधार करके ही माना मेरे दिल के फ्रेम का,
छोटे छोटे सपनो की, फाईले इतनी बनाई,
लाख जतन करके भी, डिलिट ना हो पाई,
पापा ने भी डंडे का मुझ पर, एंटी वायरस चलाया,
पर वायरस तेरे प्यार का, कमप्यूटर से निकल ना पाया,
उडा कर सारी खुशियो का डाटा, आप गायब हो गयी,
आशाओ की सारी फाईले, पी.सी से गुम हो गयी,
धीरे धीरे करप्ट इसने, दिमाग की रैम कर दी,
हार्ड डिस्क की सारी मैमोरी, अपनी यादो से भर दी,
फारमेट किया सिस्टम सारा, शायद रह गयी कुछ कमी है ?,
क्योंकि आरजू की फाईल मे अब, पहले सा डाटा नही है,
हा हा हा……………क्या शिकायत है।
ReplyDeleteकांटे को कांटे से ही निकाला जाता है... पायरेटेड को पायरेटेड एंटीवायरस ही काम करेगा :)
ReplyDeleteयार, एंटी-वायरस तो ओरिजिनल डाल देते !!
ReplyDeleteफिर मज़ा क्या आता ।
zabardast !
ReplyDeletewaaaaaaaaaaah !
दीपक सैनी जी, आज के समय में पायरेटिड वर्ज़न ज्यादा चलता है, चिंता मत करो।
ReplyDeleteमस्त लिखते हो, बॉस।
फारमेट किया सिस्टम सारा, शायद रह गयी कुछ कमी है ?,
ReplyDeleteक्योंकि आरजू की फाईल मे अब, पहले सा डाटा नही है,
Wow !..very innovative !.. Beautiful creation.
I truly liked it.
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इस वायरस को भगाना है तो किसी और बड़े वायरस का इंतजाम करना पड़ेगा, हा हा हा।
ReplyDeleteदीपक, तुम्हें और तुम्हारे समस्त परिवार, मित्रों के लिये दीवाली शुभ हो।
संजय.
@ संजय भास्कर
ReplyDelete@ ZEAL
@ मौ सम कौन
आप सबका होसला अफजाई के लिए धन्यवाद।
5/10
ReplyDeleteआपकी हास्य कविता (आत्म-व्यथा) बहुत पसंद आई.
लगातार मुस्कुरा रहा हूँ.
ऐसे रचना पहली बार पढ़ रहा हूँ.
लिखते रहिये बरखुदार
उस्ताद जी नंबर बढाने के लिए धन्यवाद
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