गीत प्रेम के गाओ फिर से
आओ गले लग जाओ फिर से
बहुत रह चुका विरान गुलशन
फूल बन खिल जाओ फिर से
अलग थलग बहुत हो लिये
अब तो एक हो जाओ फिर से
मेरी सुनो, मै सुनू तुम्हारी
कहानी कोई बनाओ फिर से
झगडो से मन ऊब गया है
पैगाम अमन का लाओ फिर से
नफरत की आंधी मे जो बुझ गया
दीपक वो प्यार का जलाओ फिर से
Sunday, November 28, 2010
Thursday, November 25, 2010
सहायक योग्यता
ना नेता की सिफारिश
ना रिश्वत देने को पैसे
नौकरी मिले भी तो कैसे ?
सब के सब धुरन्धर है
सबके पास हैं डिग्री
सबमे है असीम प्रतिभा
और हौसला कुछ कर गुजरने का
ऊचाईया छू लेने का,
परन्तु जब,
स्थान एक अर्जी हजार
सभी योग्य
तो क्या करे अधिकारी
किस को दे नौकरी
सभी समान प्रतिभाशाली
ऐसे मे
नेता की सिफारिश या रिश्वत
एक मात्र
“सहायक योग्यता “ है
जो हमे भीड से अलग करती है
और नौकरी दिला सकती है
ना रिश्वत देने को पैसे
नौकरी मिले भी तो कैसे ?
सब के सब धुरन्धर है
सबके पास हैं डिग्री
सबमे है असीम प्रतिभा
और हौसला कुछ कर गुजरने का
ऊचाईया छू लेने का,
परन्तु जब,
स्थान एक अर्जी हजार
सभी योग्य
तो क्या करे अधिकारी
किस को दे नौकरी
सभी समान प्रतिभाशाली
ऐसे मे
नेता की सिफारिश या रिश्वत
एक मात्र
“सहायक योग्यता “ है
जो हमे भीड से अलग करती है
और नौकरी दिला सकती है
Saturday, November 20, 2010
दुनिया और प्रेमी
ये नही, कि विश्वास नही
स्नेह की करूण प्यास नही
मन मे प्रेम मेरे इतना
गर्भ अवनी जल जितना
ये सोच लगता है डर
निभाये हम प्रेम क्योंकर
पवित्र स्नेह नीरज खिलना
कठिन, सत्य प्रेम मिलना
हर मन ज्यो कपट बसा
दल दल लोभ मनुष्य फँसा
किस पर लगे सत की आस
कैसे मिटे ये प्रणय प्यास
मिल भी जाये जो साथी
प्रभा कोई ज्यो जगमगाती
आ जाये जीवन ज्योति बनकर
मन मे सत्य निष्ठा भरकर
स्नेह भर, अंक जलागे
मन की प्रणय तृष्णा बुझाये
बिसार कर हर मोह पाश
बाध्ँ भी दे कोई विश्वास
तो, पग मे होता आन खडा
जो, प्रेम का शत्रु बडा
कभी जाति की बेडी बनकर
कभी धर्म दीवार सा तनकर
धन कभी राह मे लाता
कभी कुल का मान दिखाता
बहुरूपिया सा, वेष बदलकर
समाज आता कई रंगो मे ढलकर
तुम ही कहो क्या बन पडे
दो दीप अन्घेरो से लडे
रात लम्बी काली बडी
विपदाये मुह बाँये खडी
पक्ष हमारा न कोई ले पाये
अपने पराये एक हो जाये
सर्घष कर बुझने के सिवा
और वो कर सकते है क्या
स्नेह की करूण प्यास नही
मन मे प्रेम मेरे इतना
गर्भ अवनी जल जितना
ये सोच लगता है डर
निभाये हम प्रेम क्योंकर
पवित्र स्नेह नीरज खिलना
कठिन, सत्य प्रेम मिलना
हर मन ज्यो कपट बसा
दल दल लोभ मनुष्य फँसा
किस पर लगे सत की आस
कैसे मिटे ये प्रणय प्यास
मिल भी जाये जो साथी
प्रभा कोई ज्यो जगमगाती
आ जाये जीवन ज्योति बनकर
मन मे सत्य निष्ठा भरकर
स्नेह भर, अंक जलागे
मन की प्रणय तृष्णा बुझाये
बिसार कर हर मोह पाश
बाध्ँ भी दे कोई विश्वास
तो, पग मे होता आन खडा
जो, प्रेम का शत्रु बडा
कभी जाति की बेडी बनकर
कभी धर्म दीवार सा तनकर
धन कभी राह मे लाता
कभी कुल का मान दिखाता
बहुरूपिया सा, वेष बदलकर
समाज आता कई रंगो मे ढलकर
तुम ही कहो क्या बन पडे
दो दीप अन्घेरो से लडे
रात लम्बी काली बडी
विपदाये मुह बाँये खडी
पक्ष हमारा न कोई ले पाये
अपने पराये एक हो जाये
सर्घष कर बुझने के सिवा
और वो कर सकते है क्या
Thursday, November 18, 2010
आस
और कब तक
बैठी रहेगी,यूं ही घुटनो पे रखे सर,
मुँह छुपाये,
वो ना आयेगा
जिसके लिए बैठी है बरसो से
आना होता
तो आ जाता अब तक
अब तो जाने लगा रवि भी
पर तेरी आस न गयी अब तक,
भूल जा
एक स्वप्न जानकर
उसके प्रेम को
भूल जा कोई आया था
महकाने दुनिया
रंग देने अपने रंग मे
तेरे तन मन को,
वो भंवरा था
चला गया रस पीकर
नई कली की
अधखिली की तलाश मे
उसे अटूट प्यार किया ना
पगली ने
मन क्या तन भी वार दिया
ये भी ना सेाचा
ये भी ना जाना
कल क्या होगा,
विश्वास बहुत था न उस पर
अपने प्रेम पर,
जाने क्या क्या
सपने सजाये होंगे
उसके लिए
प्यार के, घर बसाने के
उसके साथ
उसकी बातों मे आकर,
अब, टूट गया ना तेरा विश्वास
लूट गया ना वो,
तेरा तन - मन ओर सुख चैन,
सब कुछ,
और तू पगली
अब भी बैठी है
घुटनो मे मुंह छुपाये
उसे याद करके
इसी पेड के नीचे
तालाब किनारे
उसका इंतजार करती है
आंसू बहाती है
उसे याद करके
उस निर्मोही को
जिसे कद्र न हुई तेरी
तेरे प्यार की ,
चला गया
मुंह मोड कर
तुझे छोड कर
मन को तोड कर
जब उसे नही तेा
तू क्यो करती है उसकी परवाह
और कब तक याद करेगी उसे
बोल, कुछ तो बोल
“टूटा तन टूटा मन
टूट गया विश्वास
मै रहूगी बैठी यही
जब तक न टूटेगी आस “
Tuesday, November 16, 2010
ग़ज़ल
मन मे बाते कैसी पलने लगी
बेरूखी की हवाये चलने लगी
तेरी मेरी बात बन जाती मगर
हमे देख दुनिया जलने लगी
मेरी ही आह है ये सर्द हवाये
नमी आँखो की इनमे घुलने लगी
तेरा क्या तू बदल ले शायद
मेरी आदत कहाँ बदलने लगी
मै तो वहीं हूँ पुल की तरह
तू ही नदी सी चलने लगी
यहाँ तेरी हसरत ने अंगडाई ली
उधर मेरी मिट्टी रूह बदलने लगी
बेरूखी की हवाये चलने लगी
तेरी मेरी बात बन जाती मगर
हमे देख दुनिया जलने लगी
मेरी ही आह है ये सर्द हवाये
नमी आँखो की इनमे घुलने लगी
तेरा क्या तू बदल ले शायद
मेरी आदत कहाँ बदलने लगी
मै तो वहीं हूँ पुल की तरह
तू ही नदी सी चलने लगी
यहाँ तेरी हसरत ने अंगडाई ली
उधर मेरी मिट्टी रूह बदलने लगी
Sunday, November 14, 2010
वो
सामने की गली के
आखरी मकान मे
वो रहती है
वो
जो चुप होकर भी सब कहती है
सब जानती है पर चुप रहती है
वो
जो समाज से डरती है
फिर भी प्यार करती है
मन मे भावनाये जगाती है
सपने देखती और
दिखाती है
उठती है उसके मन मे भी तरंगे
परन्तु वह दबा देती है
बस एक बार उठाकर
पलके झुका देती है
वो
जो चुपचाप ले लेती है
मेरे हर खत को
पर कोई उत्तर नही देती है
जाने क्या है
उसके मन मे
खत देती नही
पर ले लेती है?
वो
जो चाहती तो है
पर अपनाती नही
छुपाये रखती है बताती नही
घर के किसी तन्हा कोने मे
आँसू छलकाती है
वो जिसे मै चाहता हूँ
जो मुझको चाहती है
आखरी मकान मे
वो रहती है
वो
जो चुप होकर भी सब कहती है
सब जानती है पर चुप रहती है
वो
जो समाज से डरती है
फिर भी प्यार करती है
मन मे भावनाये जगाती है
सपने देखती और
दिखाती है
उठती है उसके मन मे भी तरंगे
परन्तु वह दबा देती है
बस एक बार उठाकर
पलके झुका देती है
वो
जो चुपचाप ले लेती है
मेरे हर खत को
पर कोई उत्तर नही देती है
जाने क्या है
उसके मन मे
खत देती नही
पर ले लेती है?
वो
जो चाहती तो है
पर अपनाती नही
छुपाये रखती है बताती नही
घर के किसी तन्हा कोने मे
आँसू छलकाती है
वो जिसे मै चाहता हूँ
जो मुझको चाहती है
Thursday, November 11, 2010
भावनाये
इस छोटे से मन मे
भावनाये अनेक बसती है
नये नये रंगो से प्रतिदिन
रंगोलिया नई सजती है
सजते है नित सपने नये
आशायें जन्म लेती है
उडती प्रेमाकाश मे
खोल परो को लेती है
नववधु बनकर मुस्काती
घुंघट खोल रिझाती है
कौन अपना कौन पराया
सब को गले लगाती है
खिलती गुलाब सी, तुम्हे देखकर
आँख मिले तो शर्माती है
ये भावना है मन की
तुम पर प्रेम लुटाती है
तुम मिलो तो आये चैन
ना मिलो तेा घबराती है
तुम्हारे वियोग के नाम से
रोती है , डर जाती है
सब अन्त हो जाता है
और सांसे भी रूक जाती है
जब कभी किसी मन की
भावनाये बिखर जाती है
भावनाये अनेक बसती है
नये नये रंगो से प्रतिदिन
रंगोलिया नई सजती है
सजते है नित सपने नये
आशायें जन्म लेती है
उडती प्रेमाकाश मे
खोल परो को लेती है
नववधु बनकर मुस्काती
घुंघट खोल रिझाती है
कौन अपना कौन पराया
सब को गले लगाती है
खिलती गुलाब सी, तुम्हे देखकर
आँख मिले तो शर्माती है
ये भावना है मन की
तुम पर प्रेम लुटाती है
तुम मिलो तो आये चैन
ना मिलो तेा घबराती है
तुम्हारे वियोग के नाम से
रोती है , डर जाती है
सब अन्त हो जाता है
और सांसे भी रूक जाती है
जब कभी किसी मन की
भावनाये बिखर जाती है
मुबारकबाद
दोस्तो सबसे पहले तो आप मुझे मुबारकबाद दिजिए। अरे नही नही मेरी सगाई नही हुई है और ना ही मेरी नौकरी लगी है। ना ही ऐसा कुछ हुआ है जैसा कि आप सोच रहें है।
पिछले आठ दिन से मै इस चक्कर मे लगा हुआ था, मै ही क्या सभी यार दोस्त भी, यहाँ तक की दिवाली भी इसी चक्कर मे निकल गयी। आप लोगो से मुलाकात भी न हो पायी (पोस्ट पढकर या टिप्पणी देकर) आप भी सोच रहे होंगे की दिवाली मना रहा है या बिमार है कि कुछ पता ही नही कहाँ है, अपने ब्लाग पर भी लिखकर नही गया। इधर हम भी परेशान क्योकि आप लोगो से सम्पर्क जो नही था।
हुआ यूँ के 3 नवम्बर की शाम को मेरे गाँव के एक बच्चे ने रोकेट छोडा, अब आप कहेगें कि इसने कौन सी बडी बात है दिवाली पर सभी छोडते है। लेकिन उस बच्चे के राकेट का एंगेल गलत हो गया ओर वो जा चला सीधे टेलीफोन एक्सचेंज की तरफ, अब उसके पास भी एक पटाखे वाले की दुकान, राकेट सीधा पटाखो पर और फिर जो आतिश बाजी हुई उसका क्या हाल बताऊ। कुछ राकेट उडे और जा घुसे एक्सचेंज के जेनरेटेर के पास रखे डीजल के ड्रम मे, और फिर क्या था, चारो तरफ आग ही आग। पूरा गाँव आग बुझाने मे लग गया, आग तो बुझ गयी पर पूरा नेटवर्क बंद हो गया, हमारा इंटरनेट भी, अब हम परेशान की क्या करे बिना इंटरनेट के तो हम बेकार है। अगले दिन जाकर पता किया कब तक ठीक होगा तो कहा गया शाम तक हो जाना चाहिए हम कोशिश मे लगें हैं। लेकिन शाम तक भी न हुआ, अब यार दोस्त भी परेशान, किसी का मेल आना था किसी को चैट करना था (गाँव मे मेरी ही इकलौती दुकान है जहाँ इंटरनेट की सुविधा है ) बस फिर क्या था सलाह हुई कि ऐसे तो काम न चलेगा एक्सचेंज मे जाकर ही कुछ करना पडेगा और हमारी टीम बहुच गयी एक्सचेंज। अब बी एस एन एल वालो के साथ साथ हम भी मशीनो के साथ हाथापाई करने लगे। हम मशीनो से परेशान, मशीने बी एस एन एल वालो से और बी एस एन एल वाले हम से, कई दिन की जंग के बाद आज लाईन चालू हुई।
आज लाईन चालू होने के बाद जो खुशी हुई उसे मै ब्यान नही कर सकता। आज नेट चालू होने के बाद मै फिर से अपने उस परिवार से मिल रहा हूँ जिसकी आठ दिन से खैर खबर ही नही थी। इसलिए मुझे मुबारकबाद दिजिये कि मेरा इंटरनेट चल गया और मै अपने परिवार मे वापस आ गया।
आज पहली बार गद्य मे कुछ लिखा है जानता हूँ बहुत सारी गल्तिया की होंगी, पर आप उन गल्तियो को नजरअंदाज कर छोटा भाई समझ कर माफ कर देना।
पिछले आठ दिन से मै इस चक्कर मे लगा हुआ था, मै ही क्या सभी यार दोस्त भी, यहाँ तक की दिवाली भी इसी चक्कर मे निकल गयी। आप लोगो से मुलाकात भी न हो पायी (पोस्ट पढकर या टिप्पणी देकर) आप भी सोच रहे होंगे की दिवाली मना रहा है या बिमार है कि कुछ पता ही नही कहाँ है, अपने ब्लाग पर भी लिखकर नही गया। इधर हम भी परेशान क्योकि आप लोगो से सम्पर्क जो नही था।
हुआ यूँ के 3 नवम्बर की शाम को मेरे गाँव के एक बच्चे ने रोकेट छोडा, अब आप कहेगें कि इसने कौन सी बडी बात है दिवाली पर सभी छोडते है। लेकिन उस बच्चे के राकेट का एंगेल गलत हो गया ओर वो जा चला सीधे टेलीफोन एक्सचेंज की तरफ, अब उसके पास भी एक पटाखे वाले की दुकान, राकेट सीधा पटाखो पर और फिर जो आतिश बाजी हुई उसका क्या हाल बताऊ। कुछ राकेट उडे और जा घुसे एक्सचेंज के जेनरेटेर के पास रखे डीजल के ड्रम मे, और फिर क्या था, चारो तरफ आग ही आग। पूरा गाँव आग बुझाने मे लग गया, आग तो बुझ गयी पर पूरा नेटवर्क बंद हो गया, हमारा इंटरनेट भी, अब हम परेशान की क्या करे बिना इंटरनेट के तो हम बेकार है। अगले दिन जाकर पता किया कब तक ठीक होगा तो कहा गया शाम तक हो जाना चाहिए हम कोशिश मे लगें हैं। लेकिन शाम तक भी न हुआ, अब यार दोस्त भी परेशान, किसी का मेल आना था किसी को चैट करना था (गाँव मे मेरी ही इकलौती दुकान है जहाँ इंटरनेट की सुविधा है ) बस फिर क्या था सलाह हुई कि ऐसे तो काम न चलेगा एक्सचेंज मे जाकर ही कुछ करना पडेगा और हमारी टीम बहुच गयी एक्सचेंज। अब बी एस एन एल वालो के साथ साथ हम भी मशीनो के साथ हाथापाई करने लगे। हम मशीनो से परेशान, मशीने बी एस एन एल वालो से और बी एस एन एल वाले हम से, कई दिन की जंग के बाद आज लाईन चालू हुई।
आज लाईन चालू होने के बाद जो खुशी हुई उसे मै ब्यान नही कर सकता। आज नेट चालू होने के बाद मै फिर से अपने उस परिवार से मिल रहा हूँ जिसकी आठ दिन से खैर खबर ही नही थी। इसलिए मुझे मुबारकबाद दिजिये कि मेरा इंटरनेट चल गया और मै अपने परिवार मे वापस आ गया।
आज पहली बार गद्य मे कुछ लिखा है जानता हूँ बहुत सारी गल्तिया की होंगी, पर आप उन गल्तियो को नजरअंदाज कर छोटा भाई समझ कर माफ कर देना।
Wednesday, November 3, 2010
वायरस तेरे प्रेम का
जिन्दगी के कमप्यूटर मे आया जबसे, वायरस तेरे प्रेम का,
बंटाधार करके ही माना मेरे दिल के फ्रेम का,
छोटे छोटे सपनो की, फाईले इतनी बनाई,
लाख जतन करके भी, डिलिट ना हो पाई,
पापा ने भी डंडे का मुझ पर, एंटी वायरस चलाया,
पर वायरस तेरे प्यार का, कमप्यूटर से निकल ना पाया,
उडा कर सारी खुशियो का डाटा, आप गायब हो गयी,
आशाओ की सारी फाईले, पी.सी से गुम हो गयी,
धीरे धीरे करप्ट इसने, दिमाग की रैम कर दी,
हार्ड डिस्क की सारी मैमोरी, अपनी यादो से भर दी,
फारमेट किया सिस्टम सारा, शायद रह गयी कुछ कमी है ?,
क्योंकि आरजू की फाईल मे अब, पहले सा डाटा नही है,
बंटाधार करके ही माना मेरे दिल के फ्रेम का,
छोटे छोटे सपनो की, फाईले इतनी बनाई,
लाख जतन करके भी, डिलिट ना हो पाई,
पापा ने भी डंडे का मुझ पर, एंटी वायरस चलाया,
पर वायरस तेरे प्यार का, कमप्यूटर से निकल ना पाया,
उडा कर सारी खुशियो का डाटा, आप गायब हो गयी,
आशाओ की सारी फाईले, पी.सी से गुम हो गयी,
धीरे धीरे करप्ट इसने, दिमाग की रैम कर दी,
हार्ड डिस्क की सारी मैमोरी, अपनी यादो से भर दी,
फारमेट किया सिस्टम सारा, शायद रह गयी कुछ कमी है ?,
क्योंकि आरजू की फाईल मे अब, पहले सा डाटा नही है,
Monday, November 1, 2010
चिंता
बैठा रहा चिंता नाग
मन पर कुण्डली मारे
डसता रहा, फन फैलाकर
बार बार मन मे भरता रहा
बेतोड अपनी विष आग,
रक्त की बूँद बूँद मे
रम गया विष इसका
धुआ हो गया शरीर
निष्चेतन होने लगे प्राण,
चाहा कई बार
मार डालूं ये नाग
सुरा की लाठी से
परन्तु, विफल रहा
हर प्रहार से,
वो अधिक बलवान होता गया,
और अधिक विषैला हो
डसता रहा,
निकली न कोई राह
इसको मारने की और,
खत्म करने की विष का प्रभाव,
असफल रहा हर शस्त्र,
क्षत विक्षप्त मन और
जीर्ण शीर्ण तन लेकर
जीता रहा, परन्तु कब तक ?
आखिर एक दिन
आत्मा ने बदल ही लिये वस्त्र
मन पर कुण्डली मारे
डसता रहा, फन फैलाकर
बार बार मन मे भरता रहा
बेतोड अपनी विष आग,
रक्त की बूँद बूँद मे
रम गया विष इसका
धुआ हो गया शरीर
निष्चेतन होने लगे प्राण,
चाहा कई बार
मार डालूं ये नाग
सुरा की लाठी से
परन्तु, विफल रहा
हर प्रहार से,
वो अधिक बलवान होता गया,
और अधिक विषैला हो
डसता रहा,
निकली न कोई राह
इसको मारने की और,
खत्म करने की विष का प्रभाव,
असफल रहा हर शस्त्र,
क्षत विक्षप्त मन और
जीर्ण शीर्ण तन लेकर
जीता रहा, परन्तु कब तक ?
आखिर एक दिन
आत्मा ने बदल ही लिये वस्त्र
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