तुम्हे प्रेम करके क्या मैने पाया
मेरे श्याम तुमको मैं कैसे ये बताऊ
तुम्हे देखना बस देखते ही रहना
इन आँखों को अपनी मैं और क्या दिखाऊ
तुम्हारी कृपा से ही जीवन है मेरा
तुम्हारी कृपा से ही मिटा सब अंधेरा
तुम्ही ने दिया है सब कुछ मुझको
तुम्ही पे मैं अपना सब कुछ लूटाऊ
गोपी कोई बृज की मुझे भी बना दो
तान कोई मुरली की मुझे भी सुना दो
करो मुझको शामिल ग्वालो में अपने
मैं भी तुम्हारी गैया चराऊ
कृपा तुम्हारी मुझको जब से मिली है
बरसो से बन्द आंखे तभी तो खुली है
तुम्हारे सिवा चाहूँ मैं अब किसको
तुम्हारे सिवा अब किसे मैं रिझाऊँ
तुम्हारे लिए लाया मैं ये फूल पाती
तुम्हारे लिए ही है ये दीपक ये बाती
तन मेरा अर्पित मन मेरा अर्पित
आंसुओ से अपने मैं दीपक जलाऊ
सुंदर पंक्तियां....रचना पढवाने के लिए आभार !!
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