उस जगहा को चूम कर होता हें सूॅेूकून,
तेरे दामन को जहाॅ चूमते थे कभी ,
उन खतो को देख निकल आते हें आॅसू ,
जिन खतो को पढकर झूमते थे कभी ,
उन आॅखो में खोने को तरसती हें आॅखे,
जिनकी गहराई में डूबते थे कभी ,
वे गलियां भी अब लगती हें अजनबी ,
सारा दिन जिनमें हम द्यूमते थे कभी ,
सावन के उन झूलो की टूटी पडी हें डोर,
जिन झूलो पे संग तेरे झूलते थे कभी ,
उस चेहरे का नूर ही गुम हो गया कही ,
अनारे नूर जिस पे हरपल फूटते थे कभी ,
उस बाग मे भी अब छा गयी पतझड,
जिस बाग मे हर शाम द्यूमने थे कभी ,
फूल वो मुर्झा गये अब सारे ,
तेरी साॅसो की छूअन से जो खिलते थे कभी ,
बे रंग हो रहे हें अब गुलिस्ताॅ सारे,
रंगो में तेरे ही जो ढलते थे जो कभी ,
रौशनी का दूर तक उनका नाता न रहा ,
जो .दीपक. तेरे आगोश में जलते थे कभी,
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