फिर जली आज महफिल में शाम,
फिर परवाने मचलने लगे,
लग रहे हें वो आज इतने हॅंसी ,
देख कर अरमाॅ पिद्यलने लगे हॅेसी
देख कर अरमा पिद्यलने लगे हें,
बन सॅवर के तुम महफिल में आया करो ,
आ ही जाओ तो यूॅ मुस्कुराया ना करो ,
सब नजरे टिकी हे इस चेहरे पे आकर,
गर उठाओ तो नजरे झकाया ना करो,
पता हें तम्हे खुब सूरत हो तुम ,
बनाता हें हॅसी ओर भी टीका नजर का लगाया ना करो,
तुम्हारे आने से होती हें रौनक ए महफिल ,
फिर भी यूॅ जुलफे बिखराया ना करो ,
देख कर हुस्न तुम्हारा जलता हें कमर,
बहकता हें दिल दुपटा काॅधे से सरकाया ना करो,
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