Thursday, September 9, 2010

फिर जली आज महफिल में शाम,


फिर परवाने मचलने लगे,

लग रहे हें वो आज इतने हॅंसी ,

देख कर अरमाॅ पिद्यलने लगे हॅेसी

देख कर अरमा पिद्यलने लगे हें,

बन सॅवर के तुम महफिल में आया करो ,

आ ही जाओ तो यूॅ मुस्कुराया ना करो ,

सब नजरे टिकी हे इस चेहरे पे आकर,

गर उठाओ तो नजरे झकाया ना करो,

पता हें तम्हे खुब सूरत हो तुम ,

बनाता हें हॅसी ओर भी टीका नजर का लगाया ना करो,

तुम्हारे आने से होती हें रौनक ए महफिल ,

फिर भी यूॅ जुलफे बिखराया ना करो ,

देख कर हुस्न तुम्हारा जलता हें कमर,

बहकता हें दिल दुपटा काॅधे से सरकाया ना करो,

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