Thursday, September 9, 2010

फिर डाकिये ने आवाज लगायी,


सोचा मेने आज शायद चिटटी तेरी आयी,

आये तो खत कई नाम के मेरे,

भेजी हो जो तूने वो चिटटी पायी ,

धडकन बढ जाती इस दिल की ,

डाकिया जब आवाज लगाता हें,

हलका.हलका सा एक डर ,

तेरे दिल में बैठा जाता हें,

उस खत में लिखडाले ये ,

दिल के सब जज्बात ,

सच बताऊ इस डर से ,

सोया नही में सारी रात,

होगा क्या जवाब तेरा ,

मेरे प्यार के इजहार का ,

होगा खत वो नफरत भरा ,

या जिक्र होगा दकरार का,

इतने निदो के बाद शायद

तुमको मेरी याद आयी,

जवाब देना जाने से पहले ,

उस खत में मेरी लिखा था,

लिखा वही उस खत में मैने ,

जो तुझमे तुझे दिखा था,

जाने से पहले जवाब न आया ,

बुरा ना माना था मैने,

शायद भूल गयी होगी तुम ,

सबब यही बस जाना मैने

तेरी गलती को माफ किया ,

तुझसे प्यार में करता हूॅ,

अब खत का बेकरार मन से,

दिन रात इन्तजार में करता हूॅ,

फिर उसकी आवाज सुनकर ,

आॅख मेरी भर आयी ,

रोज गुजरता हुआ गली से,

मुझको आवाज सगाता हें,

अपने मोटे से गठठर से,

दो.चार खत दे जाता हें ,

वो चिटटी नही लाता हें ,

जो उससे में चाहता हॅू,

न पाकर तेरी चिटटी को

बस टूट के रह जाता हूॅ ,

बुरे.बुरे से उठने लगे ,

दिल में मेरे सवाल कई,

दूर जाकर मुझसे अब ,

शायद मुझको तू भूल गयी ,

भूल न जाना मुझको तू,

दिल रो.रो देता दुआई,

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