बंधे ये कच्चे धागे से जरा झटके से टूट गये,
हम सफर बनाया था जिन्हे ,वो राहो में छूट गये,
मान जाना एक कौशिश में आदत थी जिनकी,
किसी तरहा न माने ,हमसे वो ऐसै रूठ गये,
यॅॅू तो कुछ भी न पास मेरे लूटाने के लिए,
फिर भी जमाने वालो ने मेरा सब कुछ लूट गये ,
जिन्दा रहे किस ख्वाब की ताबीर के लिए,
जिस शख्स की जिन्दगी के सारे सपने टूट गये ,
रोया किसी की याद में इतना ,दीपक ,
आज इन आॅचाो के सारे आॅसू सूख गये,
तुम्हे तो जाना हें तुम जाओगी जरूर ,
मुझको जरा बताओ मेरी खता क्या हें,
मुझको रूलायेगी रात दिन तेरी यादें ,
तुम्हारे प्यार की इससे बडी सजा क्या हें,
No comments:
Post a Comment