मित्रो मेरी पिछली पोस्ट (शादी से पहले) ने थोडा सा कंफयूजन पैदा कर दिया है। सब मित्र सोच रहे है मै अभी तक आजाद (कुवाँरा) हूँ , ये कविता मैने 3 जनवरी 2004 को लिखी थी। और इसका असर देखिये कि 2 मई 2004 को मेरी आजादी छिन गयी। उसके बाद मैने लंबे समय तक कोई कविता ही नही लिखी (कारण पता नही) और जो लिखी (21 अक्टूबर 2004) वो हाजिर कर रहा हूँ
क्या कहूँ कविता कोई, क्या कोई गीत सुनाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
दुनिया मे आया, आकर रोया,
रोकर फिर चुप हो गया,
लडा, झगडा पाप ढोया,
थक कर एक दिन सो गया,
अन्त समय भी यही थी कोशिश
काम अधूरे करता जाऊ,
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
झूठ की धरती पे मैने
पाप के थे बाये दाने,
थाली मे दुष्कर्म सजे थे
बन कर तरह -तरह के खाने
बोया था पेड बबूल का
तो आम कहाँ से पाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
इससे लिया उसको दिया
कितनो का लेकर भूल गया
नून-तेल-लकडी की खातिर
अपने हाथो से मूल गया
है सत्य यही जीवन का
इसको कैसे झुठलाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
क्या कहूँ कविता कोई, क्या कोई गीत सुनाऊ
बहुत सुन्दर कविता है, आपको एवं आपके परिवार को शुभकामानाएं।
ReplyDelete... bahut sundar ... shaandaar !!
ReplyDeleteनून-तेल-लकडी की खातिर
ReplyDeleteअपने हाथो से मूल गया
बस शादी के छ महीने में ही आटे दाल का भाव पता चल गया :)
वाह!! सैनी जी,
ReplyDeleteआपने तो शादी के बाद नून-तेल-लकडी के बहाने सार्थक आध्यात्म-दर्शन परोस दिया।
साधुवाद!!
सही बात है यार जिन्दगी तो सचमुच एक जाल ही है निकलने का कोई छोर नजर ही नही आता है। सुन्दर कविता। आभार।
ReplyDeleteधत् तेरे की, कल की कविता में और आज की कविता में स्वप्न और यथार्थ का कितना फर्क दिखने लगा । इतनी जल्दी इतना परिवर्तन !
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता. मगर शादी को आजादी छिनने से जोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा.
ReplyDeleteबढ़िया.
वीर बालक अभी क्या स्थिती है....????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????
ReplyDeleteरथ का पहिया तो ठीक है न.....??????????????????????????????????????????????
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहा...हा....हा...हा...हा...आपकी नासाजियत हमें बेहद अफ़सोस है....आपकी कविताई फिर से शुरू हो सके इस मंगलकामना के संग....!
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteजीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
ReplyDeleteक्या कहूँ कविता कोई, क्या कोई गीत सुनाऊ
इसका मतलब शादी के बाद लेखन बेहतर हुआ.सुन्दर अति सुन्दर.
kavita padh kar kaafi achca laga...जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ, bahut hi sahi line hai, Great Job.
ReplyDeleteशादी के बाद की परिवकवता स्वयं ही यह प्रमाणित करती है ,
ReplyDeleteजो जितना डूबेगा जग के भंवर मे, उतने बेहतर मोती (अनुभव)पायेगा
जीवन के मकड जाल मे फस कर ही, जीवन सार समझ मे आयेगा
बहुत बढ़िया भाई सब के दिल कि बात बहुत सुंदर लेकिन मार्मिक तरीके से कह दी ...क्या अंदाज है ...बहुत पसंद आया ..शुक्रिया
ReplyDeleteइससे लिया उसको दिया
ReplyDeleteकितनो का लेकर भूल गया
नून-तेल-लकडी की खातिर
अपने हाथो से मूल गया
है सत्य यही जीवन का
इसको कैसे झुठलाऊ
जीवन है मकडी का जाला, पग-पग फंसता जाऊ,
क्या कहूँ कविता कोई, क्या कोई गीत सुनाऊ
आप दिल से लिखते रहें ... कविता बनती रहेंगी ।
बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता ।
@ झील जी,
ReplyDelete@ उदय जी,
धन्यवाद
@ अंशुमाला जी,
सबको लग जाता है जी हमारी तो बिसात ही क्या
@ सुज्ञ जी,
धन्यवाद
@ एहसास (अमित भाई)
सच कह रहे हो यार
@ सुशील बाकलीवाल
परिवर्तन तो एक दिन मे ही आ जाता है सर जी
@ बोले तो बिंदास
रोहित जी, रथ के दोनो पहिये सही सलामत एवं मस्त हैं
@ सदा जी,
ReplyDeleteधन्यवाद
@ राजीव थेपडा जी
कविताई तो शुरू हो चुकी है
@ दिनेश शर्मा जी,
@ संजय भास्कर जी,
धन्यवाद
@ कुवँर साहब
लेखन की समीक्षा के लिए आभारी हूँ
@ गोपाल मिश्रा जी,
धन्यवाद
@ पलाश जी,
ठीक कहते हो
@ केवल राम जी
@ मनोज भारती जी
धन्यवाद
तावला ही जान गया भाई नून, तेल और लाकड़ी का मोल:)
ReplyDeleteसपना और सच हमेशा एक नहीं होते दोस्त, अच्छी कविता।
शुभकामनायें।
प्रिय,
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सुंदर ....रचना...
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जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
ReplyDeletebahut khoob... ye haal-chaal tha khushhaali ka ya behaali ka... :)
ReplyDeleteab main vivaah par koi kavita nahei likhungee... warna kya pata uska asar bhi aapki pahli kavita jaisa ho? :)
मकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...
लोहड़ी,पोंगल और मकर सक्रांति उत्तरायण की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआत्मचिंतन एवं आत्म समीक्षा की सुन्दर ,बेबाक अभिव्यक्ति ||
ReplyDelete@ मो सम कौन ?
ReplyDeleteभाई साहब जितना तावला पता चल जावै उतना ठीक।
@ शिवा जी
@ डिम्पल माहेश्वरी जी
धन्यवाद
@ पूजा जी,
लिखे या ना लिखे असर तो होना ही है।
@ सुज्ञ जी
@ सुरेन्द्र सिंह झंझट जी
धन्यवाद
वाह क्या बात है !
ReplyDeleteहलकी फुलकी कविता अच्छे अंदाज़ में लिखी हुई है.
ReplyDeleteआपकी कलम को सलाम.
वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर वर्णन
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तमन्ना कभी पूरी नही होती.....संजय भास्कर
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद
बहुत सुन्दर कविता.....
ReplyDeletebilkul sahi kaha bhai aape
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