पिता जी पुत्रवधु ले आओ
बढने लगी है ठंड रात मे
होता है कम्पन्न गात मे
जल्दी कोई लगन सुझवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
थक गया सेंक - सेंक कर रोटी
कोई अधजली तो कोई मोटी
अब तो अच्छा भोजन करवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
बाहर मै औरों को देखूं
पर नारी से आँखे सेंकू
इन हरकतो पर अकुंश लगवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
बार बार कोई ध्यान मे आये
मेरे काम मे बिध्न कराये,
मेरी नौकरी को बचवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
यार मेरे सब मुझको घेरे
कहते तुम कब लोगे फेरे
इन ठलुओ के हाथ धुलवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
जो यूँ बीत गये कुछ साल
तो पक जायेंगे मेरे बाल
समय रहते मंडप सजवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
भाई अपने भी यही हाल हैं....
ReplyDeleteहा हा हा...अच्छे विचार...
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ReplyDeleteअपने भी यही हाल हैं....
ReplyDeleteमैं कह रहा हूँ पछताओगे बाद में आप तीनों अगर बीच में कोई चौथा न आया तो.
ReplyDeleteलिखना भूल गया था कि अच्छी प्रार्थना है पिता प्रभु से.
ReplyDelete.
ReplyDeleteदीपक जी ,
इतनी बेहतरीन रचना पहले कभी नहीं पढ़ी। पिताजी आपकी प्रार्थना शीघ्र सुन लें तो ये कविता भी सार्थक हो जाए। वधु आने की अग्रिम बधाई। न्योता देना मत भूलियेगा।
.
दीपक जी,
ReplyDeleteबेहतरीन विनंति भरा प्रार्थना-पत्र है।
सभी समस्याओं के उल्लेख सहित!!
मान्य होना निश्चित है।
सार्थक अभिव्यक्ति!!!!
कृपानिधान अब तो सुन भी लीजिए पुत्र की दारूण पुकार........
ReplyDeleteन्योता देना मत भूलियेगा........दीपक जी
ReplyDeleteबाहर मै औरों को देखूं
ReplyDeleteपर नारी से आँखे सेंकू
इन हरकतो पर अकुंश लगवाओ
पिता जी पुत्रवधु ले आओ
................अच्छी प्रार्थना है
wah..wah
ReplyDeletechalo kuch din to garmi aa hi jayegi...aagali sardi me fir dekha jayega....kya hal hai
बाहर मै औरों को देखूं
ReplyDeleteपर नारी से आँखे सेंकू
तो आप तीनो ये काम भी करते है |
ओ हीरो,
ReplyDelete02-05-2004 याद सै अक भूल गया?
दे जरा बहुरिया का फ़ोन नंबर, मैं सिंकवाऊंगा तेरी आंखें।
वाह रे सीधे-सादे:))
हा हा हा
मस्त बेटे हो अपने पिता के ! पिता जी को अब तुरंत विचार करना चाहिए ...बेटे के भरोसे बैठना अच्छी बात नहीं ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteक्या बात है???बड़ा दिल खोल के कहा सब कुछ.
ReplyDeleteठण्ड के लिए पत्नी? कहाँ से सोचा ऐसा? अजीब सोच.
शब्द तो मस्त हैं....
किसी से प्रेम-आग्रह भी कर डालिए
मजेदार रचना.
भाई शादी वो लड्डु है जो खाए पछताए जो ना खाए ललचाए। क्यों अपनी आजादी का गला घोंटने पे तुले हुए हो।
ReplyDelete... bahut sundar ... prasanshaneey !!
ReplyDeleteआपकी अर्ज़ी देख ली गई है.. मामला विचाराधीन है.. उचित समय पर कार्य्वाही की जाएगी.. कृपया इस विषय पर पुनः पत्राचार अथवा आवेदन न करें.
ReplyDeleteपिता जी!
आज कि रचना से आपकी अर्जी आपके पापा ने सुनली होगी ऐसी आशा है |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
ReplyDeleteआशा
आशा
ईश्वर से कामना है कि इसी सर्दी में ही आपकी दरख्वास्त मंजूर हो जावे । नजरिया पर विजिट के लिये आभार...
ReplyDeleteदीपकजी,
ReplyDeleteआपकी इस रोचक आरजू को मैं भी फालो कर रहा हूँ, कामना ये भी है कि 'जिन्दगी के रंग' पर भी आपकी तस्वीर दिख सके । धन्यवाद सहित...
http://jindagikerang.blogspot.com/
@ शेखर सुमन भाई,
ReplyDelete@ संजय भास्कर भाई
भूषण जी जो कह रहे है उस पर भी ध्यान दो।
@ भूषण जी,
आप का कहना 100 प्रतिशत सही है
@ झील जी,
मौका हाथ से निकल गया
@ सुज्ञ जी,
मान्य हो चुकी है
@ दीपक बाबा जी,
बाबा जी आपको तो सब पता है
@ विवेक मिश्र जी
हर सर्दी मे सर्दी ही होती है।
@ अंशुमाला जी
ReplyDeleteमेरे साथ साथ शेखर और संजय को भी लपेट दिया
@ मो सम कौन
भाई साहब आपको नंम्बर दे दूँ (इतना भी सीधा सादा नही हूँ)
गालिया थोडे ही खानी है मुझे
@ सतीश जी
ये सही कहा आपने वाकई अपने मस्त पिता जी का मस्त बेटा हूँ
@ राजेश कुमार नचिकेता जी
सर जी सोच अजीब जरूर है पर ................
@ एहसास
अमित भाई आजादी का गला तो घुट चुका है
@ उदय जी
ReplyDeleteधन्यवाद
@ सम्वेदना के स्वर जी
थैक्स पिता जी
@ आशा जी
धन्यवाद
@ सुशील बाकलीवाल
कामना तो कब की पुर्ण हो चुकी है फालो करने के लिए धन्यवाद
आप सबने मेरे लिए अपनी नाजुक उगंलियो को कष्ट देकर जो स्नेह
मुझ पर बरसाया है उसके लिए दिल से आभारी हूँ
bahut achhe vichar hai
ReplyDeletebahut khub
is bar mere blog par
"main"
ishwar kare apki prarthna sweekar ho!
ReplyDeletemanoranjak kavita.
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ReplyDeleteनम्र आग्रह हमेशा स्वीकार किये जाते है .....आपकी वधु आनी निश्चित है
ReplyDeleteधन्यवाद
http://anubhutiras.blogspot.com
विनय पत्रिका ने तुलसीदास तो बना ही दिया .
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