Wednesday, December 1, 2010

दीपक जले

दीवाली पे कितने दीपक जले
कोई ना जले ज्यो दीपक जले
हूक उठती एक मन मे
देख अन्धेरा अपने ही तले
वो ना आये देर रात तक
जिनके लिए हम शाम से जले
औरो को राह दिखा दी लेकिन
खुद रहे वही पे खडे
बाँहे पसारे खडे रहे हम
ओरों से मिले वो जा के गले
जिसको चाहा उसने ना चाहा
प्यार की और क्या सजा मिले
उसके सितम की इंतहा है ये
दीपक तरसे अपनी ही ज्योति के लिए

20 comments:

  1. भावुक कर देने वाली बेहतरीन रचना। प्यार में तो ऐसा ही होता है। ये डगर आसान नहीं।

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  2. उसके सितम की इंतहा है ये
    दीपक तरसे अपनी ही ज्योति के लिए
    बहुत ही प्यारी लाईन है। आभार

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  3. अपनी भावनाओं को खूबसूरत शब्दों में पिरोया है आपने.....

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  4. उसके सितम की इंतहा है ये
    दीपक तरसे अपनी ही ज्योति के लिए
    @ दीपक भाई आपने तो भावुक कर दिया

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  5. दीपक,
    अच्छा लिखा है!
    शायद मेरे पोस्ट पे पहले छापा ये मुक्तक भी यही भाव लिए है:
    परवाने आते हैं बहुत शमा जो जलती है अगर!
    देता है कोई साथ कहाँ लेकिन दूर तक मगर?!
    मैं मोम हूँ जो तेरे संग जलता हूँ पिघलता हूँ!
    दूंगा साथ तेरा दिलबर तेरी जुल्फों के पकने तक!
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  6. @ झील जी,
    @ एहसास जी,
    @ दीपक बाबा जी,
    @ उदय जी,
    @ संजय भास्कर जी,
    @ आशीष जी,
    अपना कीमती समय देने व हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद

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  7. इत जले दीपक उत मन मोरा.. आपके भाव इतने स्पष्ट दिख रहे हैं इस कविता में कि कोई भी महसूस कर सके!!

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  8. बढ़िया अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें

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  9. भावुकता से सीजी निग्घ वाली कविता. अच्छी प्रस्तुति.

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  10. @ सम्वेदना के स्वर जी,
    @ सतीश सक्सेना जी,
    @ भूषण जी,
    @ कुवँर कुसुमेश जी,
    अपना कीमती समय देने व हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद

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  11. प्यार किये जा। हा हा हा...

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  12. उसके सितम की इंतहा है ये
    दीपक तरसे अपनी ही ज्योति के लिए

    बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां ....बधाई सुन्‍दर लेखन के लिए ।

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  13. भावुक कर देने वाली बेहतरीन रचना।
    प्यार में तो ऐसा ही होता है।
    ये डगर आसान नहीं।
    प्यार की राह में कराल महा , तलवार की धार पे धावन है ...

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  14. @ मो सम कौन जी,
    @ सदा जी,
    @ अशोक मिश्र जी,

    अपना कीमती समय देने व हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद

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  15. जिनके लिए हम शाम से जले
    औरो को राह दिखा दी लेकिन
    खुद रहे वही पे खडे
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    यह राह नहीं आसन
    यहाँ नहीं कोई धर्म और ईमान
    बा बढ़ते चलो
    बिना किसी इच्छा के
    बहुत बढ़िया ...दिल को प्रभावित करने बाली...शुक्रिया

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  16. @ Kewal Ram ji,
    @ mridula pradhan ji,
    अपना कीमती समय देने व हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद

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  17. बहुत ही प्यारी रचना... बहुत खूब...

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