जो नही नहाते
दुनिया दारी के जल मे,
इमानदारी नामक जूँ
हो जाती है उनके सर मे,
परेशान रहते हैं हाथ भी
और बाल (गोपाल) भी
जब भी करते है कोशिश
अन्य-आय की
तभी जूँ काट लेती है
हाथ कुछ लेने के ब्जाय
खुजलाने चला जाता है
जो रोज नहाते है
आल क्लीयर लगाते है
बाल भी खुश
हाथ भी खुले खुले
औरो के मन भी भाते है
(ये और बात
वो रब को मुंह न दिखा पाते है)
yaqeena ek behad sudrinn aur sandesh-parak rachna....
ReplyDeletesaleem
9838659380
ha ha ha....
ReplyDeleteबहुत खूब...वैसे आजकल सब नहाने लगे हैं, ये जू शायद ही बची है...
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDelete... bahut khoob ... rochak post !!!
ReplyDeleteइमानदारी नामक जूँ
ReplyDelete...
बहुत खूब कही.....
एक नया शेम्पू आ रहा है - डिरेक्ट फ्रॉम इटली... उसे लगाइए और जुंए भगाइए....
बहुत ही सुन्दर बात कही आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletehanakdar vyangy kavita..
ReplyDelete@ सलीम जी,
ReplyDeleteब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
@ शेखर भाई,
यही तो मुसिबत है कि अधिकतर लोग नहाने लगें है
@ संजय भास्कर भाई,
@ उदय भाई,
ब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
@ दीपक बाबा जी,
इस नये शैम्पू ने कमाल कर दिया
देश की धोती का रूमाल कर दिया
@ सदा जी,
@ सुरेन्द्र सिंह “झंझट“ जी
ब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
@ आप सब का उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
वाह राजा, आज नया रंग देखने को मिला। मजा आ गया, क्या खूब कटाक्ष किये हैं। बधाई दीपक, वैरायटी लाने पर।
ReplyDeleteबधाई हो दीपक, विविधता दिखी तुम्हारे ब्लॉग पर और एकदम मस्त रहा आगाज़ एक नये रंग का।
ReplyDeleteदीपक जी! आप भी आ गए हमारे रंग में और दीपक बाबा के रंग में.. आज तो तबियत हो रही है कि गाने लगें हम भी कि लाली देखन मैं चली,मैं भी हो गई लाल!!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!
kya bat kahin sahab........bahoot khoob. bada ajeeb sa joo hai.
ReplyDeleteजू का कविता में ऐसा प्रयोग,कमाल है भई
ReplyDeleteha....ha...ha,...ha....ha....ha....mazaa hi aa gayaa....sach bhaayi....!!!
ReplyDelete@ मो सम कौन
ReplyDeleteभाई साहब धन्यवाद, बस आपके कहे अनुसार थोडा नजरिया
बदलने की कोशिश की है
@ सम्वेदना के स्वर जी
भाई जी, लाली देखनी है तो लाल तो होना ही पडेगा
हा हा हा
@ उपेन्द्र जी,
आप पहलीबार आये है स्वागत है आपका
@ शिवम् मिश्रा जी,
आप पहलीबार आये है स्वागत है आपका
ब्लाग वार्ता पर रचना को शामिल करने के लिए आभारी हूँ
@ कुवँर कुसुमेश जी,
सब आप बडो के आर्शीवाद का फल है
@ राजीव थेपडा जी,
आप भी पहलीबार आये है स्वागत है आपका
आप सब का उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
कमाल का लिखा है ... गज़ब ... अछा व्यंग भी है अच्छी सीख भी है ..
ReplyDeleteबहुत खूब ....अच्छा लगा आपको पढ़कर, शुभकामनायें !
ReplyDeleteवाह दीपक जी वाह...
ReplyDeleteनया अंदाज़ बहुत खूब है...
पर पूछ लीजिये कि यहाँ कोई कऊआ स्नान वाला तो नहीं, क्योंकि ठंडियाँ ज़ोरों पर हैं...
अच्छा व्यंग है..अच्छा लगा पढ़ के..
ReplyDeleteजूँ के माध्यम से मगरमच्छों की बात करना आपसे कोई सीखे :))
ReplyDelete@ दिगम्बर नासवा जी,
ReplyDelete@ सतीश सक्सेना जी,
ब्लाग पर आकर हौंशला अफजाई के लिए धन्यवाद
@ पूजा जी,
ये कऊआ स्नान वाली बात समझ नही आयी (माफ करना)
ब्लाग पर आकर हौंशला अफजाई के लिए धन्यवाद
@ एस. एम. मासूम जी,
@ भूषण जी,
ब्लाग पर आकर हौंशला अफजाई के लिए धन्यवाद
मज़ेदार व्यंग्य.
ReplyDeleteदीपक जी
ReplyDeleteआपने तो सबको रास्ता दिखा दिया ...बहुत आभार
आर-जूँ से जूँ तक का शिक्षाप्रद सफर. बधाई हो!
ReplyDeleteohh...bohot hi kamaal ki nazm likhi hai dost...aur kya andaaz hai..bohot khoob
ReplyDeleteभई वाह...तबियत प्रसन्न हो गई पढ़कर..बहुत अच्छा...
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
@ शाहिद मिर्ज़ा शाहिद जी,
ReplyDelete@ केवल राम जी,
ब्लाग पर आकर हौंशला अफजाई के लिए धन्यवाद
@ शेखर सुमन
नया बसेरा मुबारक
ब्लाग पर आकर हौंशला अफजाई के लिए धन्यवाद
@ स्मार्ट इंडियन,
आपका अंदाज अच्छा लगा
@ सांझ जी,
@ वीना जी,
ब्लाग पर आकर हौंशला अफजाई के लिए धन्यवाद
दीपक भाई बहुत ही महीन चुटकी ली है।
ReplyDelete---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत - बहुत शुभकामना
bas ek bat kahungi ki majedar laga
ReplyDelete.
ReplyDeleteइमानदारी नामक जूं ...वाह ! ---एकदम नए अंदाज़ में प्रस्तुत की है आपने ये रचना।
बेहतरीन व्यंग !
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सही कहा आपने..आज कल कोई न जूँ चाहता है और न ही खाज-खुजली..इन्हें हटाने वाले तरह-तरह के साधन उपलब्ध हो तब कहने ही क्या?घर-बाहर सब खुश!! रब की बाद में देखी जाएगी...
ReplyDeleteहम सब की आँखें खोलने का शुक्रिया..