दिल का हाल बताते कब तक
उनके नाज़ उठाते कब तक
उनको गुरुर बहुत है खुद पर
उनके ख्वाब सजाते कब तक
जिन्हें प्यार की कद्र ही नही
उनको प्यार जताते कब तक
उनके सर पे नशा दौलत का
चन्दन प्रेम का लगाते कब तक
उनकी आंखें टिकी महलो पर
मन की बस्ती दिखाते कब तक
मेरे संग चलने में शर्म थी उनको
हमही अपना हाथ बढ़ाते कब तक
रौशनी की जरूरत ही नही उनको
"दीपक" खुद को जलाते कब तक
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