तुमको भूलूँ तो कुछ याद नही आता
मेरे मन को क्यो कोई और नही भाता
मन कि आंखों से भी उसको पढ़ नही पाया
जिसे चाह न थी अपनो की उसे अपना बनाया
उसके हर खेल को हम प्यार समझ बैठे
वो तो दुश्मन भी न था हम यार समझ बैठे
उससे कह दो तेरा फरेब अब सहा नही जाता
मेरे मन को क्यो कोई और नही भाता
तुमको भूलूँ तो कुछ याद नही आता
तुमको पाला था मन में अरमानो की तरह
और तुमको चाहा था हमने दीवानों की तरह
तेरी चाहत कुछ और है अगर पता होता
मन मेरा फिर न तेरे शब्ज ख्यालो में खोता
तड़प ना होती तेरी, आंख से आंसू नही आता
मेरे मन को क्यो कोई और नही भाता
तुमको भूलूँ तो कुछ याद नही आता
मन के पिंजरे में जिसको घुटन होती थी
मीठे बोलो से भी जिसको चुभन होती थी
उस पंछी को आज छोड़ दिया मैंने
प्यार का हर नाता उससे तोड़ दिया मैने
उड़ जाए अब कहीं वो, जहां उसका जी चाहता
मेरे मन को क्यो कोई और नही भाता
तुमको भूलूँ तो कुछ याद नही आता
Friday, January 26, 2018
तुमको भूलूँ तो कुछ याद नही आता
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ReplyDeleteKya khub mere shayr..
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