Saturday, February 3, 2018

कुछ मुक्तक

ऑनलाइन वो भी रही मैं भी रहा रात भर
कोई शब्द उसने कहा न मैने कहा रात भर
दोनो तरफ था इंतज़ार एक दूजे के बोलने का
होता रहा बस यूं ही रतजगा रात भर

सूरजमुखी सी तुम मेरे अंतर में खिलती हो
प्राण बन तुम प्रिय मेरी सांसो में मिलती हो
कभी धुप कभी चांदनी, कभी रागिनी बनकर
रक्त सी मेरे तन की शिराओं में फिरती हो

अपने चेहरे की गर्द को आँसूओ से धो लेता हूँ
जब याद तुम्हारी आती है थोड़ा सा रो लेता हूँ
जब भी मुरझाती है सूखने लगती है ये
तेरे प्यार की कलियों के  नए बीज बो लेता हूँ

तुझे दूर जाने की जिद है मुझे पास आने की जिद है
तुझे मिटा देनी की जिद है मुझे मिट जाने की जिद है
जिद्दी तू भी है और मैं भी हूँ सब जानते है
तुझे रुठ जाने की जिद है मुझे तुझको मनाने की जिद है

अब तो कुछ बोल यूं गुमसुम ना रह
जवाब जो कुछ भी है खुल के कह
हम तो डूब ही चुके तेरी चाहत में
मेरे प्यार में कुछ दूर तू भी तो बह

No comments:

Post a Comment