Friday, December 8, 2017

मस्त हवा सा उड़ता फिरू

मन करता है अब तुमसे और कुछ ना बोलूं मैं
मस्त हवा सा उड़ता फिरू, और सारे गगन में डोलू मैं
        सुबह शाम करता मन बस तेरा ही तो वंदन है
        जकड़े रखता जो मन को, वो तेरे प्रेम का बंधन है
        सारे बंधन तेरे प्रेम के अब अपने मन से खोलूं मै
        मस्त हवा सा उड़ता फिरू ,और सारे गगन में डोलू मैं
दबी आशाये सारी सब अरमान मिटे है
तेरे प्रेम में हम तो बिन मोल ही बिके है
मूल्य लगाऊ सपनो का अपने प्रेम को तोलू मैं
मस्त हवा सा उड़ता फिरू, और सारे गगन में डोलू मैं
         अपने मन के भावों का, तुमको है अधिकार प्रिये
         हमने तो बस देना जाना, नही किया व्यापार प्रिये
         क्या पाने की चाहत है अब, अपने मन को टटोलू मैं
         मस्त हवा सा उड़ता फिरू, और सारे गगन में डोलू मैं

1 comment:

  1. अच्छा शब्चित्र खींचा है आपने

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