हाथो में पहली बार जब उसका हाथ आया था
हजारो ख्वाहिशो को अपने साथ पाया था
क्या होगा कल को ये किसने सोचा था
हमने तो अपना बस भाग्य आजमाया था
ये प्यार की राहे है कोई खेल नही दिलबर
वो ही सेक सकता है जिसने घर जलाया था
फैला दी बांहे उसके लिए आसमानो ने
उस नन्हे से परिंदे ने जब पर फैलाया था
क्या बात थी दिल मे क्या चाँद से वादा था
ठिठुरती ठंड में भी घर से क्यो चकोर आया था
कोशिश जलने की मरते दम तक कर "दीपक"
थोड़ा ही सही फिर भी अंधेरा तुमने भी मिटाया था
बहुत ख़ूब ... अँधेरा मिटाने की एक कोशिश भी काफ़ी है आक के समय में जहाँ किसी को फ़ुर्सत ही नहीं है ...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत लिखा है आपने।
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