मोहब्बत की कलिया मिट्टी में मिला दी
आशाओ की सब बत्तिया बुझा दी
मेरी कोशिश थी तुझको छत देने की
तूने रिश्तो की सब दीवारे गिरा दी
हम देखते रहे जिन कोंपलों को
तुमने धीरे धीरे उनकी जडे हिला दी
बड़े मतलबी हो जानते थे फिर भी
अपने हिस्से की खुशियां तुम पे लुटा दी
अपना हक हम छीन भी सकते थे
तुमने हर बार नजरे नीचे गड़ा दी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-12-2017) को "पैंतालिसवीं वैवाहिक वर्षगाँठ पर शुभकामनायें " चर्चामंच 2809 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
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