Monday, December 4, 2017

मोहब्बत की कलिया

मोहब्बत की कलिया मिट्टी में मिला दी
आशाओ की सब बत्तिया बुझा दी
मेरी कोशिश थी तुझको छत देने की
तूने रिश्तो की सब दीवारे गिरा दी
हम देखते रहे जिन कोंपलों को
तुमने धीरे धीरे उनकी जडे हिला दी
बड़े मतलबी हो जानते थे फिर भी
अपने हिस्से की खुशियां तुम पे लुटा दी
अपना हक हम छीन भी सकते थे
तुमने हर बार नजरे नीचे गड़ा दी

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-12-2017) को "पैंतालिसवीं वैवाहिक वर्षगाँठ पर शुभकामनायें " चर्चामंच 2809 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. धन्यवाद शास्त्री जी

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