Tuesday, November 16, 2010

ग़ज़ल

मन मे बाते कैसी पलने लगी
बेरूखी की हवाये चलने लगी

तेरी मेरी बात बन जाती मगर
हमे देख दुनिया जलने लगी

मेरी ही आह है ये सर्द हवाये
नमी आँखो की इनमे घुलने लगी

तेरा क्या तू बदल ले शायद
मेरी आदत कहाँ  बदलने लगी

मै तो वहीं हूँ पुल की तरह
तू ही नदी सी चलने लगी

यहाँ तेरी हसरत ने अंगडाई ली
उधर मेरी मिट्टी रूह बदलने लगी

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना...

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  2. wah ka baat hai..........bahut sundar

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  3. क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......

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  4. यहाँ तेरी हसरत ने अंगडाई ली
    उधर मेरी मिट्टी रूह बदलने लगी
    ..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

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  5. वाह जनाब रूह निकलने से पहले ही पता लग गया

    तेरा क्या तू बदल ले शायद
    मेरी आदत कहाँ बदलने लगी

    बहुत खुब मेरे मन की बात आपने कही है
    धन्यवाद

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  6. मेरी ही आह है ये सर्द हवाये
    नमी आँखो की इनमे घुलने लगी..

    ----

    Beautiful couplets !

    .

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  7. @ Pooja Ji,
    @ उदय जी,
    @ Ana ji,
    @ संजय भास्कर जी,
    @ Jyoti ji,
    @ ZEAL ji,

    आप सबका ब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए आभार

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  8. अच्छे भाव संजोए हैं...बधाई.

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  9. दीपक,
    बहुत अच्छी गज़ल लिखी है। आज तक की तुम्हारी पोस्ट्स में सबसे ज्यादा अच्छी लगी मुझे तो।
    बधाई, इसी खुशी में दस नंबरी कमेंट:)

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  10. bhai kaha se late ho dhundkar. sunder gazal.

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  11. प्रिय बंधुवर दीपक जी
    नमस्कार !
    क्या बात है , बहुत प्यारी रचना है !

    इन पंक्तियों ने तो दिल जीत लिया
    मै तो वहीं हूं पुल की तरह
    तू ही नदी सी चलने लगी


    बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. @ मो सम कौन
    भाई साहब दस नंबरी कमेंट के लिए धन्यवाद
    सब आप बडे भाईयो के आर्शीवाद का फल है

    @ शाहिद साहब
    @ राजेन्द्र र्स्वणकार
    @ ehsas
    @ o my love
    आप सबका ब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए आभार

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