मन मे बाते कैसी पलने लगी
बेरूखी की हवाये चलने लगी
तेरी मेरी बात बन जाती मगर
हमे देख दुनिया जलने लगी
मेरी ही आह है ये सर्द हवाये
नमी आँखो की इनमे घुलने लगी
तेरा क्या तू बदल ले शायद
मेरी आदत कहाँ बदलने लगी
मै तो वहीं हूँ पुल की तरह
तू ही नदी सी चलने लगी
यहाँ तेरी हसरत ने अंगडाई ली
उधर मेरी मिट्टी रूह बदलने लगी
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDelete... bahut sundar !
ReplyDeletewah ka baat hai..........bahut sundar
ReplyDeleteक्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......
ReplyDeleteयहाँ तेरी हसरत ने अंगडाई ली
ReplyDeleteउधर मेरी मिट्टी रूह बदलने लगी
..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
वाह जनाब रूह निकलने से पहले ही पता लग गया
ReplyDeleteतेरा क्या तू बदल ले शायद
मेरी आदत कहाँ बदलने लगी
बहुत खुब मेरे मन की बात आपने कही है
धन्यवाद
मेरी ही आह है ये सर्द हवाये
ReplyDeleteनमी आँखो की इनमे घुलने लगी..
----
Beautiful couplets !
.
@ Pooja Ji,
ReplyDelete@ उदय जी,
@ Ana ji,
@ संजय भास्कर जी,
@ Jyoti ji,
@ ZEAL ji,
आप सबका ब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए आभार
अच्छे भाव संजोए हैं...बधाई.
ReplyDeleteदीपक,
ReplyDeleteबहुत अच्छी गज़ल लिखी है। आज तक की तुम्हारी पोस्ट्स में सबसे ज्यादा अच्छी लगी मुझे तो।
बधाई, इसी खुशी में दस नंबरी कमेंट:)
bhai kaha se late ho dhundkar. sunder gazal.
ReplyDeletevery nice.
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर दीपक जी
ReplyDeleteनमस्कार !
क्या बात है , बहुत प्यारी रचना है !
इन पंक्तियों ने तो दिल जीत लिया
मै तो वहीं हूं पुल की तरह
तू ही नदी सी चलने लगी
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
- राजेन्द्र स्वर्णकार
@ मो सम कौन
ReplyDeleteभाई साहब दस नंबरी कमेंट के लिए धन्यवाद
सब आप बडे भाईयो के आर्शीवाद का फल है
@ शाहिद साहब
@ राजेन्द्र र्स्वणकार
@ ehsas
@ o my love
आप सबका ब्लाग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए आभार