Thursday, November 11, 2010

मुबारकबाद

          दोस्तो सबसे पहले तो आप मुझे मुबारकबाद दिजिए। अरे नही नही मेरी सगाई नही हुई है और ना ही मेरी नौकरी लगी है। ना ही ऐसा कुछ हुआ है जैसा कि आप सोच रहें है।
         पिछले आठ दिन से मै इस चक्कर मे लगा हुआ था, मै ही क्या सभी यार दोस्त भी, यहाँ तक की दिवाली भी इसी चक्कर मे निकल गयी। आप लोगो से  मुलाकात भी न हो पायी (पोस्ट पढकर या टिप्पणी देकर) आप भी सोच रहे होंगे की दिवाली मना रहा है या बिमार है कि कुछ पता ही नही कहाँ है, अपने ब्लाग पर भी लिखकर नही गया। इधर हम भी परेशान क्योकि आप लोगो से सम्पर्क जो नही था।
      हुआ यूँ के 3 नवम्बर की शाम को मेरे गाँव  के एक बच्चे ने रोकेट छोडा, अब आप कहेगें कि इसने कौन सी बडी बात है दिवाली पर सभी छोडते है। लेकिन उस बच्चे के राकेट का एंगेल गलत हो गया ओर वो जा चला सीधे टेलीफोन एक्सचेंज की तरफ, अब उसके पास भी एक पटाखे वाले की दुकान, राकेट सीधा पटाखो पर और फिर जो आतिश बाजी हुई उसका क्या हाल बताऊ। कुछ राकेट उडे और जा घुसे एक्सचेंज के जेनरेटेर के पास रखे डीजल के ड्रम मे, और फिर क्या था, चारो तरफ आग ही आग। पूरा गाँव आग बुझाने मे लग गया, आग तो बुझ गयी पर पूरा नेटवर्क बंद हो गया, हमारा इंटरनेट भी, अब हम परेशान की क्या करे बिना इंटरनेट के तो हम बेकार है। अगले दिन जाकर पता किया कब तक ठीक होगा तो कहा गया शाम  तक हो जाना चाहिए हम कोशिश मे लगें हैं। लेकिन शाम तक भी न हुआ, अब यार दोस्त भी परेशान, किसी का मेल आना था किसी को चैट करना था (गाँव मे मेरी ही इकलौती दुकान है जहाँ इंटरनेट की सुविधा है ) बस फिर क्या था सलाह हुई कि ऐसे तो काम न चलेगा एक्सचेंज मे जाकर ही कुछ करना पडेगा और हमारी टीम बहुच गयी एक्सचेंज। अब बी एस एन एल वालो के साथ साथ हम भी मशीनो के साथ हाथापाई करने लगे। हम मशीनो से परेशान, मशीने बी एस एन एल वालो से और बी एस एन एल वाले हम से, कई दिन की जंग के बाद आज लाईन चालू हुई।
       आज लाईन चालू होने के बाद जो खुशी हुई उसे मै ब्यान नही कर सकता। आज नेट चालू होने के बाद मै फिर से अपने उस परिवार से मिल रहा हूँ जिसकी आठ दिन से खैर खबर ही नही थी। इसलिए मुझे मुबारकबाद दिजिये कि मेरा इंटरनेट चल गया और मै अपने परिवार मे वापस आ गया।
        आज पहली बार गद्य मे कुछ लिखा है जानता हूँ बहुत सारी गल्तिया की होंगी, पर आप उन गल्तियो को नजरअंदाज कर छोटा भाई समझ कर माफ कर देना।

4 comments:

  1. मुबारक हो दीपक। गनीमत है कि जान का कोई नुकसान नहीं हुआ। वैसे अपन तो तुम्हें त्यौहार में व्यस्त मानकर ही चल रहे थे।
    जो कविता, गज़ल लिख सकते हैं वो गद्य बहुत आराम से लिख सकते हैं, बशर्ते उंगलिया नाजुक न हों:) हम से पूछो कविता, गीत म लिख पाने की कितनी कमी महसूस करते हैं।
    शुभकामनायें।

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  2. @ मो सम कौन
    धन्यवाद संजय भाई साहब

    @ देवेन्द्र पाण्डेय जी
    ब्लाग पर आने और बधाई देने के लिए धन्यवाद

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  3. koi baat nahi. der aaye durust aaye. meri taraf se bhi mubarak bad. mere blog par tippni karne ka bhi dhanyabad.

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