बहुत दिनों से ब्लाग से दूर हूँ , कारण मैं क्या बताऊ शायद ये कविता कुछ बता दे
दो बैलो की गाड़ी
दोनों ही अनाड़ी
एक खीचे पूरब की ओर
दूजा पच्छिम को लगाये जोर
समझ दोनों की अलग
फिर भी बंधी दोनों की डोर
एक बिना हरे के भूखा
एक को सब्र देता है भूसा
एक नांद से दोनों बंधे है
खाने को मिले जो रूखा सूखा
साथ है रहना, दोनो ही जाने
फिर भी दूजे की बात न माने
बिना बात तकरार करे वो
पागल भये, वो हुए दीवाने
प्रेम दोनों तरफ पलता है
तभी तो पहिया सही चलता है
कदम लडखडाते है जब एक के
तो दूजा एकदम संभालता है
यूं ही चलते चलते
हो जायेंगे खिलाडी
दो बैलो की गाड़ी
दोनों ही अनाड़ी
दो बैलो की गाड़ी
दोनों ही अनाड़ी
एक खीचे पूरब की ओर
दूजा पच्छिम को लगाये जोर
समझ दोनों की अलग
फिर भी बंधी दोनों की डोर
एक बिना हरे के भूखा
एक को सब्र देता है भूसा
एक नांद से दोनों बंधे है
खाने को मिले जो रूखा सूखा
साथ है रहना, दोनो ही जाने
फिर भी दूजे की बात न माने
बिना बात तकरार करे वो
पागल भये, वो हुए दीवाने
प्रेम दोनों तरफ पलता है
तभी तो पहिया सही चलता है
कदम लडखडाते है जब एक के
तो दूजा एकदम संभालता है
यूं ही चलते चलते
हो जायेंगे खिलाडी
दो बैलो की गाड़ी
दोनों ही अनाड़ी
भई! हमारा तुजुर्बा तो यही कहता है .....
ReplyDeleteचारो तरफ ही ये हालात है
ये तो घर-घर की बात है ....?
शुभकामनाएँ|
अंतिम पैराग्राफ़ के लिये आमीन।
ReplyDeleteदोनों बैलों में से जो समझदार है, उसे ही ज्यादा जिम्मेदारी उठानी है मेरे भाई। समझदारी के साथ जिम्मेदारी फ़्री में आती है - ऊपरवाले का पैकेज ऐसा ही है।
दीपक भाई, आज गज़ब ढा दिया। लाजवाब रचना है। टिप्पणियों पर भी गौर फ़रमाया जाये!
ReplyDeletebahut hi khub likha hai bhai...
ReplyDeletechalo ab aa gaye ho na bahut hai .....
jai hind jai bharat
ऐसे हालात में कई बार ब्लॉग से दूर रहने से अधिक लाभ होता है. पहली टिप्पणी गौर करने लायक है. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteदोनों बैल अगर एक दिशा में नहीं चलेंगे तो गाडी थम जाएगी और बैल जोर लगाते लगाते थक जायेंगे...
ReplyDeleteनीरज
यूं ही चलते चलते
ReplyDeleteहो जायेंगे खिलाडी
दो बैलो की गाड़ी
दोनों ही अनाड़ी
jai baba banaras....
गृहस्थ आश्रम को परनाम.
ReplyDeleteदीपक जी,बिना दोनों पहियों के बगैर जीवन की गाड़ी नही चलती
ReplyDeleteघर२ की यही कहानी है |बहुत सुंदर पोस्ट,बधाई....
मेरे नई पोस्ट पर आप का स्वागत है .....
हर घर की यही कहानी मगर यह है आपकी सच बयानी ..
ReplyDeletebahut khoob kaha hai apne kavita kay madhyam say...par aise chalte chalte hi zindagi nikal jati hai...isi may khushi hai aur gam bhi.....
ReplyDeleteयही तो जीवन का रहस्य है. सुंदर कविता
ReplyDeleteबस गाड़ी चलती रहे । शुभकामनाएँ ...
ReplyDeleteराम राम दीपक जी
ReplyDeleteमहिमा जोडी की ना थोड़ी
राम-सिया की देखो जोडी
कोई मर्यादा ना तोडी
विलग हुए जब एक भूल से
लव-कुश की जोडी ने जोडी
जोडी की महिमा नहिं थोड़ी
प्रेम दोनों तरफ पलता है
ReplyDeleteतभी तो पहिया सही चलता है
कदम लडखडाते है जब एक के
तो दूजा एकदम संभालता है
बहुत ही बढि़या लिखा है ...आभार ।
भोली-भली चतुराईभरी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसामंजस्य जरुरी है. बधाई बढ़िया प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeletemujhe to sirf kuch lines hi yaad aa rahi hai...
ReplyDelete*ye jeevan hai, is jeevan ka, yahi hai yahi hai yahi hai ran roop...
aur jin do haantho se tali bajti hai, wahi ek doosre ko thante hai, aur wahi chupchap ahsaason ko baantte hain...
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर पहली बार हूं, पर सच में बहुत अच्छा लगा।
खूबसूरत कविता एक बार फिर...
ReplyDeleteआजकल कुछ निजी व्यस्तताओं के कारन ब्लॉग जगत में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहा हूँ जिसका मुझे खेद है,
ReplyDeleteApki kavita Bahut Pasand aayi! Is sarthak kavita ke liye apko badhaai!
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