Wednesday, September 28, 2011

आतंकी उवाच

आतंकी  उवाच 

कायर हो तुम, और सरकार  तुम्हारी निठल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                              कभी कोर्ट में हम कभी संसद में बम बिछाते है
                              और तुम्हारे जांबाजो के हाथो हम पकडे भी जाते है
                              फिर बन मेहमान तुम्हारी जेलों में मौज उड़ाते है
                              अपने घर में भुखमरी है, यहाँ बिरयानी खाते है
हमें किसी का डर नहीं, हम तो काली बिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                              झूठे है सब ग्रन्थ तुम्हारे किया झूठा प्रचार  है
                              जिनमे लिखा है हर देवता के हाथो में तलवार है
                              वंशज होते यदि राम के रावण को मार गिरा देते
                               केश  द्रोपदी के धोने को रक्त कोरवो का देते
देखो आज इतिहास तुम्हारा उडाता तुम्हारी खिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                             तुम्हारे घर में अजगर से हम कुंडली मारे  बैठे है
                             हमें बचाने को यार हमारे तुम्हारी संसद में बैठे है
                             तुम्हारे देश के विभीषण ही तो हमारे अन्नदाता है
                             क्योकि उनके घर का राशन हमारे देश से आता है
पाकिस्तान है डंडा तो देश तुम्हारा गिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                            हमसे यदि लड़ना है तो वीर सुभाष बनना होगा
                           गाँधीगिरी को छोड़ कर सरदार पटेल सा तनना होगा
                           वर्ना तुम रोज यूं ही अपने जख्म सहलाओगे
                            हम तुम्हारे सर पे बम फोड़ेंगे, तुम कुछ न कर पाओगे
बस खयाली पुलाव बनाती जनता तो शेखचिल्ली है
इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है
                             

36 comments:

  1. सामयिक और झकझोरती कविता लिखी है आपने दीपक जी. दिल्ली को वर्धा में ले जाना चाहिए :))
    MEGHnet

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  2. सामयिक ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  3. यही सच्चाई है ...दीपक जी !
    शुभकामनाएं!

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  4. देखो आज इतिहास तुम्हारा उडाता तुम्हारी खिल्ली है
    इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है

    बहुत बढ़िया रचना लिखी है आपने.

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  5. वास्तविक पहलुओं का सही ढंग से निरूपण किया है आपने इस सशक्त रचना में ....आपका आभार

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  6. सशक्त रचना.
    नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

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  7. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द लाजवाब है! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  8. एकदम सटीक रचना.
    नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  9. बारूद के ढेर पर तो पुरा देश बैठा है सिर्फ दिल्ली नहीं है और ये लड़ाई बाजुओ से नहीं दिमाग से लड़ी जाने वाली है सूझ बुझ से लड़ी जाने वाली है बस हर हाथ में तलवार देने से काम नहीं चलेगा, वो तो सरकार कर ही रही है एक से के हथियार खरीद रही है पर उससे क्या हमले बंद हो गये | जरुरी तो अपना ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत करने का है और घर के विभीषण को खोज कर बाहर निकालने का है |

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  10. समसामयिक
    एकदम सटीक
    बहुत पसन्द आयी यह रचना
    हमें पढवाने के लिये आभार

    प्रणाम स्वीकार करें

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  11. एकदम सटीक रचना|
    नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें|

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  12. बारूद के ढेर पर तो पूरा देश बैठा है और अब तो चेतावनी भी असर नहीं करती!! अव्यवस्था का नाम ही व्यवस्था हो गया है दीपक जी! प्रार्थना है शक्ति की देवी से कि महिषासुर का मर्दन करे!!

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  13. नयी दिल्ली पुरानी दिल्ली
    कब किसने सोचा था ऐसी हो दिल्ली ......सच कहा दीपक जी आपने .....

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  14. आतंकी मानसिकता और उसके प्रति हम लोगों की प्रतिक्रिया का एकदम सही वर्णन किया है।
    धर्म और राजनीति का काकटेल नजुत असरदार है।

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  15. तुम्हारे घर में अजगर से हम कुंडली मारे बैठे है
    ने को यार हमारे तुम्हारी संसद में बैठे है तुम्हारे देश के विभीषण ही तो हमारे अन्नदाता है
    एक रोष दिलाती हुई प्रेरक कविता बहुत उम्दा ,अतिउत्तम सच्चाई को उकेरती हुई रचना !बधाई !

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  16. दीपक,
    खरी-खरी!
    आशीष
    --
    लाईफ़?!?

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  17. सच है कि आतंकवादियों के हौसले बढ़े हुए हैं ।

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  18. sahi likha hai apne.....todays lines....

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  19. सही आकलन आज की वस्तुस्थिति का और कविता के रूप में उसकी पेशकश बहुत उम्दा है.

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  20. जो बारूद आपकी रचना में है ... काश वो देश के लोगों में भी आ जाए ... सरकार में बी ही आ जाए ...

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  21. दशहरा पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  22. आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  23. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

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  24. कायर हो तुम, और सरकार तुम्हारी निठल्ली है
    इसलिए बारूदो के ढेर पर बैठी दिल्ली है

    क्या बात है भाई,गजब का लिखा है । आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं।
    धन्यवाद ।

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  25. सम सामायिक रचना...
    विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  26. सही बात है दीपक भाई !
    शुभकामनायें आपको !

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  27. दीपक जी नमस्कार, बड़ी सही कही बात है। आपने इस रचना पर आपको बधाई भाई आपको।

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  28. सच्चाई का करारा झापड़ रसीद करती है सरकार के चेहरे पर ....आपकी बेबाक कविता

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  29. इतनी लंबी गैरहाजिरी, क्या मामला है भाई?

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  30. दीपक भाई, सरकार को अच्छी लताड़ लगाईं......दिल से बधाई.......

    ये नव - वर्ष आप एवं आपके परिवार लिए
    विशेष सुख - शांतिमय, हर्ष - आनंदमय,
    सफलता - उन्नति - यश - कीर्तिमय और
    विशेष स्नेह - प्रेम एवं सहयोगमय हो !!!!

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