Friday, September 2, 2011

बोल सखी

बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ 
जीवन हाला किस विधि पीऊँ 
प्रिय मेरे ने कदर न जानी 
पागल भई मैं हुई दीवानी 
किस विध मन के ज़ख्म को सीऊं 
बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ  


                     मनमीत मेरे ओ प्राण प्यारे 
                     सपने तोड़ गए तुम सारे 
                    बिखर गयी वादों की माला 
                    टूट गया प्रेम का प्याला 
                    मिट गया सब, एक  मैं  ही बची हूँ 
                    बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ  



अंखिया उन दर्शन की प्यासी 
मैं हूँ जिन चरणों की दासी 
जाने किसकी याद में खोये 
सखी वो भूल गए है मोहे 
अब कैसे उनकी सुध बुध लिऊ 
बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ    
 

18 comments:

  1. बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ
    जीवन हाला किस विधि पीऊँ

    अरे वाह....... सुंदर कविता...

    लेकिन सैनी साहब, छोरी ने पटरी से उठा दो..

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  2. बोल सखी मैं किस विधि जीऊँ
    जीवन हाला किस विधि पीऊँ.... बहुत बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  3. बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति| धन्यवाद|

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  4. सखी जब बतायेगी तो बतायेगी, हम बता रहे हैं कि रेल की पटरी से उठिये:)

    बहुत अच्छा लिखा है दीपक, पोस्ट दर पोस्ट लेखन निखार पर है। शुभकामनायें।

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  5. विरह को खूबसूरती से ब्यान करती कविता. लेकिन विरह में अधिक देर तक रहना अच्छा नहीं.

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  6. क्लासिकल टच के साथ गहरी भावाभिव्यक्ति!!

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  7. सुन्दर विरह काव्य ....बधाई

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  8. उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ....गहरी भावाभिव्यक्ति!!

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  9. beautiful creation...loving it...

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  10. पीड़ा है छंद में!
    आशीष
    --
    मैंगो शेक!!!

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  11. विरह की पीड़ा को सुन्दर प्रकार से अभिव्यक्त किया है आपने.
    नायिका के मार्मिक शब्द दिल को छूते हैं.
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  12. एक मर्मस्पर्शी रचना |
    बधाई
    आशा

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  13. बहुत खूब ....शुभकामनायें आपको !

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  14. आज दुबारा पढी कविता, और फिर जी चाहा कि कमेंट लिखूं। लेकिन क्‍या लिखूं, यह समझ नहीं आ रहा। बस इतना कहूंगा कि मन को छू गये भाव।

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  15. खूबसूरत अभिवयक्ति...........

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  16. प्रेमपुर्ण रचना

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