प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका आजतक
प्रेम वो है जो
दिखता है प्रिया की आँखो मे
कोई प्यारा सा उपहार पाकर
या प्रेम वो है जो
सुकून मिलता है आफिस से आकर
तुम्हारी मुस्कान पाकर
प्रेम वो है जो
चाँद पर जाने की बात करता है
केशो को घटा, आँखो को समन्दर
गालो की तुलना गुलाब से करता है
या वो
जो बचाता है पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक
प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
न समझ सका आजतक
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका आजतक
प्रेम वो है जो
दिखता है प्रिया की आँखो मे
कोई प्यारा सा उपहार पाकर
या प्रेम वो है जो
सुकून मिलता है आफिस से आकर
तुम्हारी मुस्कान पाकर
प्रेम वो है जो
चाँद पर जाने की बात करता है
केशो को घटा, आँखो को समन्दर
गालो की तुलना गुलाब से करता है
या वो
जो बचाता है पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक
प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
"प्रेम वो है जो
ReplyDeleteसुकून मिलता है आफिस से आकर
तुम्हारी मुस्कान पाकर
....
जो बचाता है पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक"
सोच, शब्द और प्रस्तुति - अति सुंदर - बधाई
पुराना शेर है,
ReplyDelete"इस लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का बस इतना फ़साना है,
सिमटे तो दिले-आशिक, फ़ैले तो जमाना है।"
कुछ भी नहीं है ये प्रेम और सब कुछ भी।
प्रेम के अनुभव से गुज़र कर भी प्रेम को परिभाषित नहीं किया जा सकता यही इसकी विशेषता है. आपकी कविता इसे स्थापित करती है.
ReplyDeleteवाह दीपक भाई बहुत खूब लिखा है.....
ReplyDeleteक्या आप भी अपने आपको इन नेताओं से बेहतर समझते हैं ???
सच कहा है आपने दिपक भाई। प्रेम को आज तक कोई समझ नहीं पाया। सुदंर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीपक जी !
ReplyDeleteप्रेम की परिभाषा देना बड़ा कठिन है .....आपकी रचना बहुत सुन्दर आयाम दे रही है प्रेम को
प्रायः प्रेम कल्पना की भूमि पर पनपता है किन्तु आपने यथार्थ की खुरदुरी ज़मीन पर प्रेम की परिभाषा का खूबसूरत चित्रण किया है.
ReplyDeleteवाह !! बहुत खूब ... प्रेम को कोई समझ नहीं पाया आज तक....
ReplyDeleteप्रेम की परिभाषा का खूबसूरत चित्रण किया है| धन्यवाद|
ReplyDeletekya baat hai dost maza aa gaya
ReplyDeletevaise kan-kan main prem hai. vo sirf ek ehsaas hai. uski paribhasha na hi samaj main aye to aaccha hai. vaise bhi mujhe lagta hai ki prem ko paribhashit nahi kiya ja sakta
अच्छी रचना ....शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteभैया ये तो हम भी नहीं समझ पाए आज तक :)
ReplyDelete@ संजय बाउजी: गजब शेर मारा है आपने, वाह वाह!
दीपक जी प्रेम को परिभाषित करने की क्या जरूरत है ... ये तो बस करने की चीज़ है... करो और डूब जाओ ...
ReplyDelete@ राकेश कौशिक जी
ReplyDeleteधन्यवाद
@ संजय @ मो सम कौन ? जी
बेहतरीन शेर, धन्यवाद
@ भूषण जी
धन्यवाद
@ शेखर सुमन जी
धन्यवाद
@ एहसास जी
धन्यवाद
@ मनप्रीत कौर जी
धन्यवाद
@ सुरेन्द्र सिंह जी
धन्यवाद
@ धीरेन्द्र जी
ReplyDeleteधन्यवाद
@ क्षितिजा जी
धन्यवाद
@ पाटली द विलेज जी
धन्यवाद
@ विजय जी
धन्यवाद
@ सतीश सक्सेना जी
धन्यवाद
@ सोमेश सक्सेना जी
धन्यवाद
@ दिगम्बर नासवा जी
धन्यवाद
या वो
ReplyDeleteजो बचाता है पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक
प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
bahut sahi kahan ,sundar rachna .
हमें देरक्या हुई संजय बाऊजी शेर मारकर चल दिये!ख़ैर जब रूमानियत हक़ीक़त की ज़मीन से टकराती है तो इस तरह की परिभाषा जन्म लेती है!!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर तो पहली बार आई, पर बहुत अच्छा लगा. आप अच्छा लिखते हैं.
ReplyDelete'पाखी की दुनिया' में भी तो आइये !!
बहुत अच्छी लगी परिभाषा प्रेम की |बधाई
ReplyDeleteआशा
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteपहले मैं भी परिभाषित करना चाहती थी प्रेम को ...अब समझ लिया है ...
* सुबह लंच बनाने में ।
* घर को संवारने में
* देश और समाज के लिए लिखने में
* दूसरों की रचनाएँ पढने में
* मत्यु होने तक जिये गए हर क्षण में अब प्रेम ही प्रेम दीखता है ।
.
Love is many things, many things are love.
ReplyDeleteप्रेम वह सभी कुछ है जैसा कि आपने उल्लेख किया है . बहुत कुछ आपकी मनोदशा व अवस्था पर निर्भर करता. है. बाली जी से भी पूरी सहमति है.
ReplyDeleteprem ki khatir hi to aapne hamara dil jeet liya
ReplyDeletekya khub likha
प्रेम को बहुत खूबसूरती से प्रभाषित किया है आपने.
ReplyDeleteउम्दा रचना.
सलाम
कुछ न होने से बहुत कुछ होना है प्रेम । अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteप्रेम, प्यार लुटाने का नाम है इसमें कुछ पाने की कामना से तो प्यार कभी परिभाषित हो ही नहीं पायेगा.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी परिभाषा है।
ReplyDelete---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
प्रेम को बहुत सुन्दर मतलब बताया आपने
ReplyDeleteदीपकजी आपसे मुलाकात शायद पहली बार हो रही है लेकिन मैं आपकी बात से प्रभावित हूँ जो आप मेरे बलोग पर कहा "आपकी पोस्ट को पढकर मैने भी एक गाय पालने का मन बना लिया है" था!उसके लिए आपका तहे-दिल से आपका धन्यबाद करता हूँ!
सत्य है... प्रेम को महसूस किया जा सकता है परन्तु शायद लिखना मुश्किल है...
ReplyDeleteसही कहा...
वाह...
प्रेम वह सभी कुछ है जैसा कि आपने उल्लेख किया है
ReplyDeleteसुन्दर मतलब बताया आपने
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..