हमने तो चाहा था प्यार, हमेशा दिया तुमने तिरस्कार
प्रिय अभी तुम हो रूपसी, कंचन काया ज्यों धूप सी
अंग अंग मुस्काते फूल, मादकता में गयी हो भूल
अमिट मेरा प्रेम केवल, मिट जायेगा यौवन श्रंगार
हमने तो चाहा था प्यार, हमेशा दिया तुमने तिरस्कार
हर आवश्यकता पर हाथ दिया, मांगा हर पल साथ दिया
सोचा कभी ना आगे पीछे, देखा कभी ना ऊपर नीचे
हमे छल गयी तेरी आँखे, तेरी आँखों को संसार
हमने तो चाहा था प्यार, हमेशा दिया तुमने तिरस्कार
हमने तो प्रेम योग किया, तुमने हमे उपयोग किया
हमने हर ली पथ की बाधा, तुमने हित बस अपना साधा
इस मन थी प्यास प्रेम की, उस मन भरे हुए थे अंगार
हमने तो चाहा था प्यार, हमेशा दिया तुमने तिरस्कार
तेरे यौवन का रस न चाहा, मादकता पर बस न चाहा
चाहे तो बस प्रेम के बोल, कह देते बस अधरों को खोल
"इस मन भी प्रेम जोत जली, रोशन जिससे ये संसार"
हमने तो चाहा था प्यार, हमेशा दिया तुमने तिरस्कार
नैनो में दर्शन की प्यास, गया लिए मिलन की आस
प्रेम असीम मन मे भरकर, पहुँचा जब भी तेरे दर पर
लौटा हूँ खाली हाथ प्रिये, अपमानित सा मैं हर बार
हमने तो चाहा था प्यार, हमेशा दिया तुमने तिरस्कार
Tuesday, July 17, 2018
हमने तो चाहा था प्यार
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