किस्से मोहब्बत के सबको सुनाने की
कोई रूठ भी जाये तो बार बार मनाने की
कितनी भी करो कोशिश न आयेंगे आंसू मेरे
मेरी बचपन से है आदत हमेशा मुस्कुराने की
बहुत सुंदर हो तुम इसी का गुरुर है तुमको
वजह और तो कोई नही मुझे ठुकराने की
कोई असर नही मेरी बातों का तुम पे होता
कोई तरकीब नही जग मे जागते को जगाने की
तेरे आने से खिल उठा था मेरा जीवन
अब तो ऋतु रह गयी है बस मुरझाने की
निकलता दम तेरी बांहो में तो और बात होती
पड़ता नही फर्क वजह कुछ भी हो जान जाने की
आरज़ू दीपक के दिल की हवाये क्या जाने
उनको तो आदत है जलते चिरागो को बुझाने की
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