मेरा प्रेम नही आकर्षण जो कल था और आज नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
तुमसे ही बंधी मेरे इस जीवन की डोर,
तुम्ही सांझ हो और तुम्ही ही हो भोर
तुम चाहे मानो या फिर ना मानो
तेरे सिवा इस दिल में नही बसा कोई और
घर से निकलू और घर न लौटू
ऐसी मेरी परवाज नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
अपने जीवन के इतने साल
संग मेरे बिताये तुमने हर हाल
समझ सकी न कभी मुझको
आंखों में रखे हमेशा सवाल
अपनी बातें तुम पर थोपू
ऐसा तो मेरा अंदाज नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
माना मुझको प्यार जताना नही आता
लोगो की तरह रिश्ते निभाना नही आता
समझ नही है मुझको दुनिया दारी की
पर रस्मे झूठी निभाना मुझको नही भाता
कितना भी समझा लो मुझको
आऊंगा मैं बाज़ नही
रिश्ता है ये जीवन भर का , कहने को लोक लाज नही
Sunday, March 11, 2018
कहने को लोक लाज नही
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प्रेम गीत ...
ReplyDeleteमन के गहरे भाव जैसे शब्द बन के निकल आये ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुंंदर भावाभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसुन्दर!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,सार्थक और सटीक रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
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