Tuesday, January 17, 2012

स्मृति


स्मृति के पन्नो पर
चित्र एक अंकित  है,
कई रंगो से सजा
प्रेम तुम्हारा संचित है,


तरंगें उठती ज्यो गर्भ सागर से,
तोड देती तटो का सीना,
मन मे उठती भावनायें मेरे, 
भेद कर धर्य का सीना,


तुम मिले मुझको ज्यों 
प्यासी धरा को जल की धार,
निर्धन मन कुबेर हो गया
दिया मोती सा प्रेम अपार,


सुख के पल बुलबुले पानी के 
पल मे बनते फूट जाते,
सम्भाले रखा ह्रदय मे मैने
पल थे जो हंसते  गुदगुदाते 


छूट गया अब संग तुम्हारा 
टूट गया मिलन का त्तार,
मिट गयी गाढे प्रेम की रेखा
मिट सका न उभार,


सजकर नववधू सी 
वेदनायें चली आती हैं,
चूभती शूल सी मन को
 तेरी स्मृति कराती है,

14 comments:

  1. सजकर नववधू सी
    वेदनायें चली आती हैं,
    चूभती शूल सी मन को
    तेरी स्मृति कराती है,

    विरह वेदना का सजीव चित्रण.

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  2. यादें ये यादें!

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

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  4. सुख के पल बुलबुले पानी के
    पल मे बनते फूट जाते,
    सम्भाले रखा ह्रदय मे मैने
    पल थे जो हंसते गुदगुदाते

    जीवन जीने का सबसे कारगर तरीका है ये...बेजोड़ रचना...बधाई

    नीरज

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  5. सीधे सरल शब्दों में सादगी से यादों को याद करती लेखनी..
    वैरी गुड।

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  6. फिर भी अतीत की यादें ....सुकून देती हैं !
    शुभकामनाएँ!

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  7. सजकर नववधू सी
    वेदनायें चली आती हैं,
    चूभती शूल सी मन को
    तेरी स्मृति कराती है,

    nishchay hi gahari anubhuti prabhavshali shabdon ke sath...badhai saini ji .

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  8. सजकर नववधू सी
    वेदनायें चली आती हैं,
    चूभती शूल सी मन को
    तेरी स्मृति कराती है,
    ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  9. वास्तविकता से अधिक पीड़ा स्मृतियाँ देती हैं. बहुत बढ़िया रचना.

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  10. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.

    हर भाव मार्मिक और हृदयस्पर्शी है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.

    मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
    'हनुमान लीला भाग-३' पर आपके सुविचार आमंत्रित हैं.

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  11. बहुत खुबसूरत रचना ,चुन चुनकर शब्दों को तराशा है आपने इस रचना के लिए , बधाई

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  12. तुम मिले मुझको ज्यों
    प्यासी धरा को जल की धार,
    निर्धन मन कुबेर हो गया
    दिया मोती सा प्रेम अपार,

    आहा हा ...
    बहुत सुंदर !
    प्रिय बंधुवर दीपक सैनी जी
    नमस्ते !
    मिलन-विरह के भावों से सजी इस रचना को पढ़ना अच्छा लगा ...

    ~*~नव संवत्सर की बधाइयां !~*~
    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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