स्मृति के पन्नो पर
चित्र एक अंकित है,
कई रंगो से सजा
प्रेम तुम्हारा संचित है,
तरंगें उठती ज्यो गर्भ सागर से,
तोड देती तटो का सीना,
मन मे उठती भावनायें मेरे,
भेद कर धर्य का सीना,
तुम मिले मुझको ज्यों
प्यासी धरा को जल की धार,
निर्धन मन कुबेर हो गया
दिया मोती सा प्रेम अपार,
सुख के पल बुलबुले पानी के
पल मे बनते फूट जाते,
सम्भाले रखा ह्रदय मे मैने
पल थे जो हंसते गुदगुदाते
छूट गया अब संग तुम्हारा
टूट गया मिलन का त्तार,
मिट गयी गाढे प्रेम की रेखा
मिट सका न उभार,
सजकर नववधू सी
वेदनायें चली आती हैं,
चूभती शूल सी मन को
तेरी स्मृति कराती है,
सजकर नववधू सी
ReplyDeleteवेदनायें चली आती हैं,
चूभती शूल सी मन को
तेरी स्मृति कराती है,
विरह वेदना का सजीव चित्रण.
विरह होती ही ऐसी है.
ReplyDeleteयादें ये यादें!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुख के पल बुलबुले पानी के
ReplyDeleteपल मे बनते फूट जाते,
सम्भाले रखा ह्रदय मे मैने
पल थे जो हंसते गुदगुदाते
जीवन जीने का सबसे कारगर तरीका है ये...बेजोड़ रचना...बधाई
नीरज
सीधे सरल शब्दों में सादगी से यादों को याद करती लेखनी..
ReplyDeleteवैरी गुड।
bahut sundar srijan..
ReplyDeleteफिर भी अतीत की यादें ....सुकून देती हैं !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
सजकर नववधू सी
ReplyDeleteवेदनायें चली आती हैं,
चूभती शूल सी मन को
तेरी स्मृति कराती है,
nishchay hi gahari anubhuti prabhavshali shabdon ke sath...badhai saini ji .
सजकर नववधू सी
ReplyDeleteवेदनायें चली आती हैं,
चूभती शूल सी मन को
तेरी स्मृति कराती है,
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
वास्तविकता से अधिक पीड़ा स्मृतियाँ देती हैं. बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteहर भाव मार्मिक और हृदयस्पर्शी है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
'हनुमान लीला भाग-३' पर आपके सुविचार आमंत्रित हैं.
बहुत खुबसूरत रचना ,चुन चुनकर शब्दों को तराशा है आपने इस रचना के लिए , बधाई
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ReplyDelete♥
तुम मिले मुझको ज्यों
प्यासी धरा को जल की धार,
निर्धन मन कुबेर हो गया
दिया मोती सा प्रेम अपार,
आहा हा ...
बहुत सुंदर !
प्रिय बंधुवर दीपक सैनी जी
नमस्ते !
मिलन-विरह के भावों से सजी इस रचना को पढ़ना अच्छा लगा ...
~*~नव संवत्सर की बधाइयां !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार