लगभग १५ दिन से बिजली व् नेट की प्रोब्लम के कारण आप सब से न जुड पाने के लिए क्षमा के साथ एक पुरानी रचना प्रस्तुत है
कब तक प्यासी धरती से, अब और हम तरसगे,
जिन पर टिकी हुई हें आँखे वो सावन कब बरसेगे,
कब मिलोगे तुम हमे कब पास मेरे आओगे,
कब बैठोगे संग मेरे कब मेरी प्यास बुझाओगी,
कितना और समझाऐ मन को कितने दिलाशे हम देगे,
जिन पर टिकी हुई हैं आँखे वो सावन कब बरसेगे,
तुमको देखा तुमको चाहा और नही कुछ चाहा है ,
झाँक के देखो इन आँखों में चेहरा एक समाया है ,
होठ खुले जब भी मेरे नाम तेरा ही बस लेगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
कब देखोगे छूकर मन को अपने मन की धडकन से,
और कब तक अन्जान रहोगे मेरे दिल की तडपन से,
‘दीपक’जलाया तेरे प्यार का अब बुझने ना हम देगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
बहुत सुंदर
ReplyDelete"कब देखोगे छूकर मन को अपने मन की धडकन से,
और कब तक अन्जान रहोगे मेरे दिल की तडपन से"
सावन को आने दो:)
ReplyDeleteगरम माहौल में ऐसी नरम पुकार ठंडक ले आई।
bhut khubsurat rachna...
ReplyDelete‘दीपक’जलाया तेरे प्यार का अब बुझने ना हम देगे,
ReplyDeleteजिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
बहुत बढ़िया.
कोई बात नही दीपक भाई। कभी कभी कुछ बातें ऐसी हो जाती है जो हमारे वश में नही रहती है। वापसी के लिए मुबारकबाद।
ReplyDeleteNice poem !
ReplyDeletewelcome back.
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेंगे
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता.
Bahut lajawaab ... dono savan ki intezaar hai ab to ... barkha aur unke aane ki ... khoobsoorat ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी कविता|
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर ......
ReplyDeleteअपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
deepak ji
ReplyDeletebahut bahut hi achhi lagi aapki rachna
virah vedna ki sashakt jhalak milti hai aapki kavita me
कब देखोगे छूकर मन को अपने मन की धडकन से,
और कब तक अन्जान रहोगे मेरे दिल की तडपन से,
‘दीपक’जलाया तेरे प्यार का अब बुझने ना हम देगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
bahut khoob--------
poonam
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteतुमको देखा तुमको चाहा और नही कुछ चाहा है ,
ReplyDeleteझाँक के देखो इन आँखों में चेहरा एक समाया है ,
होठ खुले जब भी मेरे नाम तेरा ही बस लेगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! इस शानदार और लाजवाब रचना के लिए बधाई!
punah swagat hai aapka...achchi rachna.
ReplyDeleteवाह!!!!लाजवाब विरह और प्रेम की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमन के भावों का प्रतिबिबंन जस का तस .
ReplyDeleteप्रेम में बेचैनी द्रष्टव्य .......
ReplyDeleteविरह वेदना के व्याकुल भावों की सुन्दर रचना
excellent poem!
ReplyDeleteBahut sunder bhai...
ReplyDeletehar line me gajab ki wedna hai.
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