अन्न माँगा, दिया हमने
आबरू ना दे पाएंगे
रक्षक ही जब भक्षक बने
अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे
महंगा बीज , महंगा खाद
फिर भी सस्ता है अनाज
ग़ुरबत में जी लेंगे लेकिन
देश को न भूखा सुलायेंगे
रक्षक ही जब भक्षक बने
अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे
प्रकृति की मार हम पे
पड़ती रहती थम थम के
पसीना तो बहा सकते लेकिन
खून कब तक बहायेंगे
रक्षक ही जब भक्षक बने
अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे
भू माफिया औ भ्रस्ट सरकार
मिलकर कर रही अत्याचार
अब तक सहते रहे लेकिन
अब और ना सह पाएंगे
रक्षक ही जब भक्षक बने
अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे
रक्षक ही जब भक्षक बने
ReplyDeleteअन्नदाता अब कहाँ जायेंगे
sahi kaha ,bahut hi achchhi rachna
अन्न पैदा करने वालों के कष्टों को आपने कह दिया है और उनके स्वाभिमान को भी जगह दी है. अच्छा लगा.
ReplyDeleteअब तक सहते रहे लेकिन
ReplyDeleteअब और ना सह पाएंगे
दाता का खाता ही बन्द कराने पर तुले हैं लोग।
bhut hi acchi rachna...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव......खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteअन्नदाता अब कहाँ जायेंगे
bahut sunder abhivykti .
ReplyDeleteKISANO KE KASTO KO SABDO KE MADHYAM SE JAHIR KIYA HAI,
ReplyDeleteJAI HIND JAI BHARAT
बधाई ! इसी जज्बे की जरूरत है |
ReplyDeleteखुश रहो !
अशोक सलूजा !
दिपक भाई बहुत सही कहा है आपने।
ReplyDeleteकिसानों को समर्पित सार्थक तरह प्रेरक प्रस्तुति - बधाई
ReplyDeleteकिसानों को समर्पित बहुत खूबसूरत रचना|धन्यवाद|
ReplyDeletedeepak ji
ReplyDeletebahut hi sateek aur yatharth purn gahan bhavo par drishhti dalne ko prerit karti hai aapki post
bahut hi achha laga jo aapne dusaro ke dard ko dil me mahsus karke use panne par utaraa.
bahut bahut badhai
poonam
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
भू माफिया औ भ्रस्ट सरकार
ReplyDeleteमिलकर कर रही अत्याचार
अब तक सहते रहे लेकिन
अब और ना सह पाएंगे
सच्चाई का सफल चित्रण.
सुन्दर और बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteआप भी सादर आमंत्रित हैं
एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का परिचय
ये मेरी पहली पोस्ट है
उम्मीद है पसंद आयेंगी
भू माफिया औ भ्रस्ट सरकार
ReplyDeleteमिलकर कर रही अत्याचार
अब तक सहते रहे लेकिन
अब और ना सह पाएंगे
sarthak aur sachchi rachna
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
ReplyDeleteपढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html