Saturday, February 12, 2011

किसी दिन


देखूँगा किसी दिन झाँककर जरूर तेरी आँखो मे
अपनी आँखो के आँसू पहले मै सुखा लूँ
                    भर लूंगा तुझे भी बाँहो मे किसी दिन
                   सिसकती बहनों को सीने से पहले मै लगा लूँ
सहलाऊंगा तेरे भी माथे को हमसफर
अपनी माँ के पैरो को पहले मै दबा लूँ
                  उठाऊंगा तुझे भी अपनी गोद मे किसी दिन
                  बोझ पिता के कंधो का पहले मै उठा लूँ
उठाऊगाँ तेरा ही घुघंट एक दिन जरूर
डोली अपनी बहनो की पहले मै उठा लूँ
                  तेरी ही हाथ थामूगाँ वादा है ये मेरा
                 अपने आप को इस काबिल पहले मै बना लूँ

35 comments:

  1. अच्छे ख़यालात हैं. प्यार और परिवार दोनों ली जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

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  2. बहुत अच्छे विचार हैं, पर हर रिश्ता समय मांगता है :)

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  3. बहुत अच्छा लिखा है दीपक। जिन्दगी की प्राथमिकतायें इस प्रकार से व्यवस्थित करनी चाहियें कि एक के कारण दूसरों से अन्याय न हो और सबको उनका उचित प्रतिदान दिया जा सके।
    और संवेदनशील और समझदार वही हैं, जो अपने हित को सबसे बाद में रखे।
    नाज होता है खुद पर, जब तुम जैसे भाईसाहब कहकर बुलाते हैं:))

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  4. बहुत ही ज़िम्मेदारी से लिखी गयी रचना.
    दिल से लिखी गयी है सो दिल तक पहुँच रही है.
    हम तो समझ गए उम्मीद है जिसके लिए लिखी है वह भी समझ जाएगा.
    ढेरों सलाम

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  5. दीपक जी!
    ये जो विलुप्तप्राय गुण हैं उनको बख़ूबी समझा है आपने.. रिश्ते होते ही ऐसे हैं कि बहुत सम्भाल कर निबाहने होते हैं.. ग्लास, विद केयर!! काँच सए भी नाज़ुक, ज़रा सा मिसहैंडल हुआ नहीं कि चकनाचूर!!

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  6. डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
    “वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

    आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।


    http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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  7. deepak ji
    aapne gajab dha diya
    sunder

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  8. ईमानदार आत्मस्वीकॄति .......
    शुभकामनायें .......

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  9. डॉ. डंडा लखनवी जी के दो दोहे

    माननीय डॉ. डंडा लखनवी जी ने वृक्ष लगाने वाले प्रकृतिप्रेमियों को प्रोत्साहित करते हुए लिखा है-

    इन्हें कारखाना कहें, अथवा लघु उद्योग।
    प्राण-वायु के जनक ये, अद्भुत इनके योग॥

    वृक्ष रोप करके किया, खुद पर भी उपकार।
    पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥

    इस अमूल्य टिप्पणी के लिये हम उनके आभारी हैं।

    http://pathkesathi.blogspot.com/
    http://vriksharopan.blogspot.com/

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  10. 'सहलाऊंगा तेरे माथे को हमसफ़र

    अपनी माँ के पैरों को पहले मैं दबा लूं '

    वाह भाई साहब ,

    बहुत अच्छी बातों को अपने सुन्दर लहजे में व्यक्त किया है |

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  11. अच्छी सीख देती हुई सुन्दर रचना। हम सभी को इसका अनुसरण करना चाहिए।

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  12. दीपक जी!
    नमस्कार !
    अच्छी सीख देती हुई सुन्दर,सामयिक और प्यारी रचना. बहुत बढ़िया.
    ......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  13. बहुत खूब , अच्छी सोच!

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  14. @ सोमेश सक्सेना जी
    @ योगेन्द्र पाल जी
    धन्यवाद

    @ संजय @मो सम कौन
    सब आप जैसे बडे भाईयो का आर्शिवाद कि ऐसे विचार है।

    @ काजल कुमार जी
    @ सेगेबोब जी
    सलाम

    @ सम्वेदना के स्वर जी
    ठीक कहते है आप

    @ वृक्षारोपण
    बधाई

    @ उडन तश्तरी जी
    @ ओम कश्यप जी
    @ निवेदिता जी
    @ सुरेन्द्र जी
    @ एहसास (अमित भाई)
    @ झील जी
    धन्यवाद

    @ संजय भास्कर
    आपको भी

    @ साहिल जी
    धन्यवाद

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  15. प्रिय दीपक जी

    बहुत सुंदर रचना लिखी है । बधाई !
    - * सहलाऊंगा तेरे भी माथे को हमसफर
    अपनी मां के पैरो को पहले मै दबा लूं

    -- * उठाऊंगा तुझे भी अपनी गोद मे किसी दिन
    बोझ पिता के कंधो का पहले मै उठा लूं

    --- * उठाऊंगा तेरा ही घूंघट एक दिन ज़रूर
    डोली अपनी बहनो की पहले मै उठा लूं


    शिल्प में कसावट की कुछ आवश्यकता है… लेकिन भाव इतने श्रेष्ट हैं कि रचना मन को छू लेती है । बधाई और शुभकामनाएं !

    प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
    ♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं! :)

    बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  16. प्रत्येक पंक्ति में भारतीय संस्कृति की धड़कनें हैं। देश की माटी संग मुखरित होती रचना।

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  17. प्रणाम आपके सोच को, लाजवाब रचा है आपने दिल के जज्बातों को ।

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  18. कर्तव्य बोध , अपने प्यार अपने सुख से बड़ा हमेशा होता है ! शुभकामनायें

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  19. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  20. आपकी तैयारी अच्‍छा है पर
    स्‍त्री के बारे में ऐसे भी सोचना चाहि‍ये
    , देखें।
    http://rajey.blogspot.com/

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  21. काफी जिम्मेदाराना कविता कही है. समाज के हित में लिखे गए विचार बहुत सुंदर हैं.

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  22. अपने प्यार अपने सुख से बड़ा हमेशा होता है| धन्यवाद्|

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  23. kya khoob likte ho
    deepak ji very good

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  24. भारतीय संस्कृति की धड़कन...शुभकामनायें

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  25. सहलाऊंगा तेरे भी माथे को हमसफर
    अपनी माँ के पैरो को पहले मै दबा लूँ ..

    बेहद संवेदनशील लिखा है ... यथार्थ लिखा है ... काश हर कोई ऐसा सोचे .... .

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  26. Great sense of responsibility. Good post.

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  27. vaah vaah kya bat hai deepak bhai
    bahut khoob

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  28. बहुत अच्छी बातों को अपने सुन्दर लहजे में व्यक्त किया है |

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  29. अति उत्तम विचार आपके आप की इस कविता से जो हमें सीख मिली है हम उसे जरूर अपने जिन्दगी में उतारेंगे |
    हम भी भविष्य में ऐसी ही कविताओं को लिखने का प्रयास करेंगे |

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  30. तेरी ही हाथ थामूगाँ वादा है ये मेरा
    अपने आप को इस काबिल पहले मै बना लूँ.. bhut bhut khubusurat lines hai usse kahi jayda khubsuruat vichar hai apke...

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