तेरा सीना चीरते चीरते
पुरखे मेरे र्स्वग सिधारे
तू थकी ना अन्न देती देती
ना वे हल चलाते हारे
बचपन मेरा सना रहा तुझमे
तुझमे यौवन ने ली अंगडाई
तू थी, तो बसा घर मेरा
तुझ से ही अंगीठी जल पायी
कैसे जाने दूँ यूँ ही तुझको
तू “सरकार“ को भा गयी
कैसे करने दूँ अधिग्रहण उसे
वो डायन कितनो को खा गयी
मै बेटा हूँ किसान का
माँ हमारी है ये धरती
“सरकार“ बदल लो अपना इरादा
क्यो किसान से है पंगा करती
है क्या पास सिवाय धरते के
जिसके सहारे मै रहूँगा
(सुनो “सरकार“) मार दूंगा या मर जाऊँगा
पर माँ पर आंच ना आने दूंगा
पुरखे मेरे र्स्वग सिधारे
तू थकी ना अन्न देती देती
ना वे हल चलाते हारे
बचपन मेरा सना रहा तुझमे
तुझमे यौवन ने ली अंगडाई
तू थी, तो बसा घर मेरा
तुझ से ही अंगीठी जल पायी
कैसे जाने दूँ यूँ ही तुझको
तू “सरकार“ को भा गयी
कैसे करने दूँ अधिग्रहण उसे
वो डायन कितनो को खा गयी
मै बेटा हूँ किसान का
माँ हमारी है ये धरती
“सरकार“ बदल लो अपना इरादा
क्यो किसान से है पंगा करती
है क्या पास सिवाय धरते के
जिसके सहारे मै रहूँगा
(सुनो “सरकार“) मार दूंगा या मर जाऊँगा
पर माँ पर आंच ना आने दूंगा
सराहनीय रचना।
ReplyDeleteप्रभावकारी लेखन के लिए बधाई।
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कृपया पर इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
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गाँव-गाँव घर-घ्रर मिलें, दो ही प्रमुख हकीम।
आँगन मिस तुलसी मिलें, बाहर मिस्टर नीम॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
Ati Sundar
ReplyDeleteबहुत खूब...सरकार को सुनना ही होगा...
ReplyDeleteसुंदर एवं प्रभावशाली रचना। शुभकामनाएॅ।
ReplyDeleteदीपक जी!इस प्रेम का कोई मोल नहीं जिसे वो कौड़ियों के मोल नीलाम कर रहे हैं!!
ReplyDeleteसरकार से क्या कह रहे है हमारे कृषि मंत्री कह रहे है की वो तो किसानो के लिए सब कुछ कर रहे है पार पता नहीं क्यों किसान आत्महत्याए कर रहे है |
ReplyDeleteआमीन..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteढेरों बसंतई सलाम.
deepak ji bahut hi acche sabdo me aapne
ReplyDeletedharti ma ki pukar ko blog tak pahuchaya
sarkaar ko bhi manana padega
thanks bhai ji
बचपन मेरा सना रहा तुझमे
ReplyDeleteतुझमे यौवन ने ली अंगडाई
तू थी, तो बसा घर मेरा
तुझ से ही अंगीठी जल पायी
भावों का सटीक प्रस्तुतीकरण...
प्रभावशाली रचना.
दर्द समझ आता है, लेकिन दोस्त हालात अच्छे नहीं हैं। जब एक एक बीघा के लिये 7\8 फ़िगर की कीमत लगेगी तो बहुत सों की भावनायें बदल जाती हैं, बहुत नजदीक से देखे हैं ऐसे सीन।
ReplyDeleteये अच्छा लगा कि इस उम्र में धरती के बारे में ऐसे विचार हैं।
बसंत पंचमी की शुभकामनायें।
@ दीपक सैनी जी..
ReplyDeleteनमस्कार !
सराहनीय रचना।
बेहद प्रभावकारी लेखन के लिए बधाई।
माटी कहे पुकार के...क्या बात है....मिट्टी की व्यथा...सही लिखा..
ReplyDelete(सुनो “सरकार“) मार दूंगा या मर जाऊँगा
ReplyDeleteपर माँ पर आंच ना आने दूंगा ...
Beautiful expression !
.
@ डॉ0 डंडा लखनवी
ReplyDeleteदोहे अच्छा लगा जी
@ तारकेश्वर गिरी जी
पधारने के लिए धन्यवाद
@ शेखर सुमन
सुनना तो पडेगा भाई
@ एहसास (अमित भाई)
धन्यवाद
@ सम्वेदना के स्वर जी
ReplyDeleteसर जी, कौडियो का मुआवजा दे कर करोडो मे बेच रही है
@ अंशुमाला ली
ये मंत्री कुछ करते तो आत्महत्या की नौबत ही नही आती
@ सुशील बाकलीवाल जी
धन्यवाद
@ सगेबोब जी
आपको भी बसंतई सलाम
@ ओम कश्यप भाई
धन्यवाद
@ शिखा जी
ReplyDeleteधन्यवाद
@ सजय@मो सम कौन ?
भाई साहब बात तो आपकी भी ठीक है पर शायद सब के साथ ऐसा है क्योकि जिस दिन से हमारी जमीन के अधिग्रहण के बात पता लगी है मेरे ताऊ जी की तबियत मे बहुत गिरावट आ चुकी है और पिता जी भी काफी परेशान है
@ संजय भास्कर
संजय भाई धन्यवाद, आपको भी बसंत की शुभकामनाये
@ राजेन्द्र कुमार नचिकेता जी
धन्यवाद
@ झील जी
धन्यवाद
बिलकुल किसान की सादगी के साथ सीधी बात रखी है। अच्छी कविता।
ReplyDeleteतेवर अच्छा है और रचना भी. माटी की बात बहुत कुछ कहती है और माटी सभी की कहानी कहती है.
ReplyDeleteसुंदर एवं प्रभावशाली रचना। शुभकामनाए|
ReplyDelete'मैं बेटा हूँ किसान का
ReplyDeleteमाँ हमारी है ये धरती '
धरती माँ को समर्पित बहुत ही संकल्प वद्ध रचना
किसान तो वैसे ही सब्र की मिसाल होता है, उसका मार डालना या मिट जाना, समझ नहीं आता।
ReplyDeleteकिसान की ओर से पर सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना। हार्दिक बधाई।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
धरती माँ के प्रति आपका प्रेम प्रणम्य है.
ReplyDeleteमाँ के बच्चे की सच्ची आवाज़...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...
@ दिनेशराय द्विवेदी जी
ReplyDeleteआप पहली बार आये है स्वागत है , धन्यवाद
@ भूषण जी
जब जान पे बन आती है तेवर तो बदल ही जाते है
धन्यवाद
@ पटाली जी
धन्यवाद
@ सुरेन्द्र सिंह जी
धन्यवाद
@ राजीव शा जी
जब आपकी जमीन पर सरकार द्वारा अधिग्रहण तो अपने आप समझ
आ जायेगा जी, आप पहली बार आये है स्वागत है आपका आते
रहीयेगा
@ डा0 (मिस) शरद सिंह जी
आप पहली बार आये है स्वागत है
@ जाकिर अली रजनीश जी
धन्यवाद
@ कुवँर कुसुमेश जी
एक किसान को अपनी धरती माँ से प्रेम नही होगा तो किस से होगा
धन्यवाद
@ पूजा जी
धन्यवाद
बहुत समर्पित भावों का संगम ।
ReplyDeleteati sundar
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