आज एक पुरानी कविता झेलिये
तुम होगी चंचल, सुकोमल
ज्यो रवि की प्रथम प्रभा की
आकाश से चाँदनी रात मे
आओगी किरणो के रथ पर
पग पग पुष्प् गिराएंगे देव
प्रिय तुम्हारे पथ पर
ऐसा कहाँ सोचा है मैने
सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
किताबो को सीने से लगाये
बार बार पोछती माथे की बूंदो को
एक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर
तुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने
22.02.2002
तुम होगी चंचल, सुकोमल
अप्सरा कोई इन्द्र सभा की
मुख पर होगी अनन्त लालीज्यो रवि की प्रथम प्रभा की
आकाश से चाँदनी रात मे
आओगी किरणो के रथ पर
पग पग पुष्प् गिराएंगे देव
प्रिय तुम्हारे पथ पर
ऐसा कहाँ सोचा है मैने
सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
किताबो को सीने से लगाये
बार बार पोछती माथे की बूंदो को
एक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर
तुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने
22.02.2002
यूँ ही कभी किसी मोड पर
ReplyDeleteतुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने
lajawab sar ji
bahut sunder kavita
jidhar dekho pyar hi pyar
ReplyDeletekavita padhe layak he baar baar
वाह ! दीपक भाई
ReplyDeleteइस कविता का तो जवाब नहीं !
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
ReplyDeleteअच्छा है, पर ऐसा लग रहा है की आगे चार लाइन और होनी चाहिए रचना बीच में ही खत्म हो गई |
ReplyDeleteजो सोचा था वह तो सुन्दर है ही मगर जो नहीं सोचा था वह और भी सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत उम्दा.
ReplyDeleteएक पुराना गाना याद गया.
मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम.
गाने के भाव कुछ अलग थे.
पर फिल्माया कुछ आप की नज़्म की तरह है.
नज़्म पुरानी है तो उम्मीद है कि कहानी कुछ आगे बढ़ी होगी,
नए अलफ़ाज़ में इक नज़्म नयी ढली होगी.
सलाम.
बस sagebob की उपरोक्त टिप्पणी वाली सिचुएशन ही मेरे भी दिमाग में आपकी कविता को पढते समय चल रही थी । उम्दा प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना
ReplyDeletebeautiful
भई वाह क्या बात है. सुंदर सपना कोमल ही होता है. अच्छा लगा पढ़ कर.
ReplyDeleteसिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
ReplyDeleteकिताबो को सीने से लगाये
बार बार पोछती माथे की बूंदो को
एक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर
तुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने
ये तो किसी picture का सीन लग रहा है.कई फिल्मों में देखा है की हीरोइन हीरो से टकरा गई और किताबें गिर पड़ीं.
दोस्त ये सिर्फ कल्पना ही है या हकीकत। अगर कल्पना है तो सुंदर और हकीकत है तो सुभान अल्लाह।
ReplyDeleteअच्छी है भाई! कई लोग इन एहसास से गुज़रे होंगे, कितनों के दिमाग़ में ये सब ताज़ा होगा!!
ReplyDeleteझेली नहीं इंजॉय कर ली है कविता ..खूबसूरत एहसास.
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर.
ReplyDeleteफ़िल्म मेरे हुज़ूर की याद दिला दी भाई:))
ReplyDeleteआशा से भरे मनोभाव :).... सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दीपक भैया ....
ReplyDelete------------
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....
"khaaaammmmoooossshhhh......" कहानी बहुत फ़िल्मी है.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ....।
ReplyDeletecollege romance ko kavita ke madhyam se bataya hai aapne.....quite romantic Deepak :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर सोच है आपकी।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
कविता अच्छी है। पर दोनों बंद अलग-अलग रचना जैसे लगते हैं।
ReplyDeleteतुम मुझको मिल जाओगी
ReplyDeleteसब्र भाई सब्र........
सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
ReplyDeleteकिताबो को सीने से लगाये
बार बार पोछती माथे की बूंदो को
एक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर
तुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने
aisa hi man sochta tha kabhi
badhai
DEEPAK JI
ReplyDeleteAAP KE VICHAR JHELE NANI JATE
UNSE BAHOOT KHUCH SIKHNE KO MILTA HAI
AAPKO MERI TARAF SE SHUBHKAMNAYE
@ ओम कश्यप जी
ReplyDelete@ संजय भास्कर जी
धन्यवाद
@ अंशुमाला जी
क्या करू इससे आगे बनी ही नही होगी उस वक्त
@ सुरेन्द्र सिंह “झंझट“ जी
धन्यवाद
@ सगेबोब जी
@ सुशील बाकलीवाल जी
काश मैने भी वो फिल्म देखी होती
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete@ मिथलेश दुबे जी
ReplyDelete@ एस एम जी
आप पहली बार आये है स्वागत है आपका
आने का शुक्रिया
@ भूषण जी
@ कुवँर साहब
धन्यवाद
@ अहसास जी
यार है तो कल्पना ही
@ सम्वेदना के स्वर जी
@ शिखा जी
@ सुनिल कुमार जी
धन्यवाद
@ संजय @ मो सम कौन जी
ReplyDeleteमेरे हुज़ूर भी नही देखी मैने तो
@ डा मोनिका शर्मा जी
धन्यवाद
@ चैतन्य शर्मा
छोटू आने के लिए धन्यवाद
आप पहली बार आये है स्वागत है आपका
@ राजेश कुमार जी
@ सदा जी
@ गोपाल मिश्रा जी
@ जाकिर अली रजनीश जी
धन्यवाद
@ परशुराम राय जी
ReplyDeleteआप भी पहली बार आये है स्वागत है आपका
@ दीपक बाबा जी
बाबा जी कहाँ हो, तबीयत ठीक नही हुई अब तक
@ डा पवन मिश्रा जी
धन्यवाद
@ अरीबा जी
धन्यवाद
waah-2 ,
ReplyDeleteka bat hai...kavita pyar me sarabor hai.
hamre ahan bhi padhare .
"बार बार पोछती माथे की बूंदो को
ReplyDeleteएक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर.... "
इन पंक्तियों ने न जाने कितनों का दिल धड़का दिया होगा
पुरानी यादों की बारिश में भीगा मन
प्रतिक्रिया देना भी मुश्किल :)
बस ..इतना ही कि पसंद आई आपकी रचना
अच्छी कविता झेलाई है आपने
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द|धन्यवाद|
ReplyDeleteकुछ पुँरानी यादें ताजा हो गयीं ! शुभकामनायें आपको !!
ReplyDelete.
ReplyDeleteआपकी कविता पढ़कर याद आ गया एक पसंदीदा गीत --
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ,
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी ...
.
बहुत खूब...
ReplyDeleteमाफ़ कीजियेगा आज कल टिपण्णी करना थोडा कम कर दिया है लेकिन नियमित रूप से आपके और सभी ब्लॉग मित्रों के ब्लॉग पर जाता हूँ...
लिखते रहे....
बहुत ही उम्दा रचना,शुभकामनायें आपको !!
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