Monday, February 21, 2011

तुम होगी चंचल, सुकोमल

आज एक पुरानी कविता झेलिये


तुम होगी चंचल, सुकोमल
अप्सरा कोई इन्द्र सभा की
मुख पर होगी अनन्त लाली
ज्यो रवि की प्रथम प्रभा की
आकाश से चाँदनी रात मे
आओगी किरणो के रथ पर
पग पग पुष्प् गिराएंगे  देव
प्रिय तुम्हारे पथ पर
ऐसा कहाँ सोचा है मैने



सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
किताबो को सीने से लगाये
बार बार पोछती माथे की बूंदो को
एक हाथ मे पेन दबाये
पिरियड पकडने की जल्दी मे
तुम मुझसे टकरा जाओगी
यूँ ही कभी किसी मोड पर
तुम मुझको मिल जाओगी
बस ऐसा ही सोचा है मैने



22.02.2002

39 comments:

  1. यूँ ही कभी किसी मोड पर
    तुम मुझको मिल जाओगी
    बस ऐसा ही सोचा है मैने
    lajawab sar ji
    bahut sunder kavita

    ReplyDelete
  2. jidhar dekho pyar hi pyar
    kavita padhe layak he baar baar

    ReplyDelete
  3. वाह ! दीपक भाई
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

    ReplyDelete
  4. वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...

    ReplyDelete
  5. अच्छा है, पर ऐसा लग रहा है की आगे चार लाइन और होनी चाहिए रचना बीच में ही खत्म हो गई |

    ReplyDelete
  6. जो सोचा था वह तो सुन्दर है ही मगर जो नहीं सोचा था वह और भी सुन्दर !

    ReplyDelete
  7. बहुत उम्दा.
    एक पुराना गाना याद गया.
    मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम.
    गाने के भाव कुछ अलग थे.
    पर फिल्माया कुछ आप की नज़्म की तरह है.
    नज़्म पुरानी है तो उम्मीद है कि कहानी कुछ आगे बढ़ी होगी,
    नए अलफ़ाज़ में इक नज़्म नयी ढली होगी.
    सलाम.

    ReplyDelete
  8. बस sagebob की उपरोक्त टिप्पणी वाली सिचुएशन ही मेरे भी दिमाग में आपकी कविता को पढते समय चल रही थी । उम्दा प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  9. बहुत ही उम्दा रचना
    beautiful

    ReplyDelete
  10. भई वाह क्या बात है. सुंदर सपना कोमल ही होता है. अच्छा लगा पढ़ कर.

    ReplyDelete
  11. सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
    किताबो को सीने से लगाये
    बार बार पोछती माथे की बूंदो को
    एक हाथ मे पेन दबाये
    पिरियड पकडने की जल्दी मे
    तुम मुझसे टकरा जाओगी
    यूँ ही कभी किसी मोड पर
    तुम मुझको मिल जाओगी
    बस ऐसा ही सोचा है मैने

    ये तो किसी picture का सीन लग रहा है.कई फिल्मों में देखा है की हीरोइन हीरो से टकरा गई और किताबें गिर पड़ीं.

    ReplyDelete
  12. दोस्त ये सिर्फ कल्पना ही है या हकीकत। अगर कल्पना है तो सुंदर और हकीकत है तो सुभान अल्लाह।

    ReplyDelete
  13. अच्छी है भाई! कई लोग इन एहसास से गुज़रे होंगे, कितनों के दिमाग़ में ये सब ताज़ा होगा!!

    ReplyDelete
  14. झेली नहीं इंजॉय कर ली है कविता ..खूबसूरत एहसास.

    ReplyDelete
  15. अच्छा लगा पढ़ कर.

    ReplyDelete
  16. फ़िल्म मेरे हुज़ूर की याद दिला दी भाई:))

    ReplyDelete
  17. आशा से भरे मनोभाव :).... सुंदर रचना

    ReplyDelete
  18. बहुत बढ़िया दीपक भैया ....

    ------------

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....

    ReplyDelete
  19. "khaaaammmmoooossshhhh......" कहानी बहुत फ़िल्मी है.....

    ReplyDelete
  20. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ....।

    ReplyDelete
  21. college romance ko kavita ke madhyam se bataya hai aapne.....quite romantic Deepak :)

    ReplyDelete
  22. कविता अच्छी है। पर दोनों बंद अलग-अलग रचना जैसे लगते हैं।

    ReplyDelete
  23. तुम मुझको मिल जाओगी

    सब्र भाई सब्र........

    ReplyDelete
  24. सिकती दोपहर मे, किसी सडक पर
    किताबो को सीने से लगाये
    बार बार पोछती माथे की बूंदो को
    एक हाथ मे पेन दबाये
    पिरियड पकडने की जल्दी मे
    तुम मुझसे टकरा जाओगी
    यूँ ही कभी किसी मोड पर
    तुम मुझको मिल जाओगी
    बस ऐसा ही सोचा है मैने

    aisa hi man sochta tha kabhi
    badhai

    ReplyDelete
  25. DEEPAK JI
    AAP KE VICHAR JHELE NANI JATE
    UNSE BAHOOT KHUCH SIKHNE KO MILTA HAI
    AAPKO MERI TARAF SE SHUBHKAMNAYE

    ReplyDelete
  26. @ ओम कश्यप जी
    @ संजय भास्कर जी
    धन्यवाद

    @ अंशुमाला जी
    क्या करू इससे आगे बनी ही नही होगी उस वक्त

    @ सुरेन्द्र सिंह “झंझट“ जी
    धन्यवाद

    @ सगेबोब जी
    @ सुशील बाकलीवाल जी
    काश मैने भी वो फिल्म देखी होती

    ReplyDelete
  27. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  28. @ मिथलेश दुबे जी
    @ एस एम जी
    आप पहली बार आये है स्वागत है आपका
    आने का शुक्रिया

    @ भूषण जी
    @ कुवँर साहब
    धन्यवाद

    @ अहसास जी
    यार है तो कल्पना ही

    @ सम्वेदना के स्वर जी
    @ शिखा जी
    @ सुनिल कुमार जी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  29. @ संजय @ मो सम कौन जी
    मेरे हुज़ूर भी नही देखी मैने तो

    @ डा मोनिका शर्मा जी
    धन्यवाद

    @ चैतन्य शर्मा
    छोटू आने के लिए धन्यवाद
    आप पहली बार आये है स्वागत है आपका

    @ राजेश कुमार जी
    @ सदा जी
    @ गोपाल मिश्रा जी
    @ जाकिर अली रजनीश जी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  30. @ परशुराम राय जी
    आप भी पहली बार आये है स्वागत है आपका

    @ दीपक बाबा जी
    बाबा जी कहाँ हो, तबीयत ठीक नही हुई अब तक

    @ डा पवन मिश्रा जी
    धन्यवाद

    @ अरीबा जी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  31. waah-2 ,
    ka bat hai...kavita pyar me sarabor hai.
    hamre ahan bhi padhare .

    ReplyDelete
  32. "बार बार पोछती माथे की बूंदो को
    एक हाथ मे पेन दबाये
    पिरियड पकडने की जल्दी मे
    तुम मुझसे टकरा जाओगी
    यूँ ही कभी किसी मोड पर.... "

    इन पंक्तियों ने न जाने कितनों का दिल धड़का दिया होगा
    पुरानी यादों की बारिश में भीगा मन
    प्रतिक्रिया देना भी मुश्किल :)
    बस ..इतना ही कि पसंद आई आपकी रचना

    ReplyDelete
  33. अच्‍छी कवि‍ता झेलाई है आपने

    ReplyDelete
  34. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द|धन्यवाद|

    ReplyDelete
  35. कुछ पुँरानी यादें ताजा हो गयीं ! शुभकामनायें आपको !!

    ReplyDelete
  36. .

    आपकी कविता पढ़कर याद आ गया एक पसंदीदा गीत --

    कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की ,
    बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी ...

    .

    ReplyDelete
  37. बहुत खूब...
    माफ़ कीजियेगा आज कल टिपण्णी करना थोडा कम कर दिया है लेकिन नियमित रूप से आपके और सभी ब्लॉग मित्रों के ब्लॉग पर जाता हूँ...
    लिखते रहे....

    ReplyDelete
  38. बहुत ही उम्दा रचना,शुभकामनायें आपको !!

    ReplyDelete